Sunday 7 October 2012

Know about camera and photography [ जानें कैमरा और फोटोग्राफी के बारे में ]

                                                  आपने कभी ऐसे फोटोग्राफर से फोटो खिंचवाई है जो एक बड़े से डब्बे के पीछे काला कपड़ा सिर पर डाल कर कुछ काला जादू सा करता रहता है फिर आपसे कहता है कि "हिलना मत" और लेंस के आगे लगे हुए ढक्कन को हटाता है, चिड़िया सी उड़ाता है और ढक्कन को वापिस लेंस पर लगा देता है ? वह काला डब्बा निश्चय ही एक पुराने जमाने का कैमरा हुआ करता था। आठ घंटे तो नहीं, हां 2 या 3 सेकेंड का समय इस कैमरे को चाहिये होता था आपकी फोटो खींचने के लिये। लेंस का ढक्कन हटने से लेकर ढक्कन वापिस लगाने तक का समय अंदाज़े से दिया जाता था। फोटोग्राफर होशियार होता था तो वह स्टॉप वाच की सहायता लेता था। 
1. कुछ फिक्स्ड फोकस कैमरों के निर्माताओं का नाम व कैमरों का मॉडल बतायें. Name some models of fixed focus cameras.



2. लेंस की रिज़ॉल्विंग पॉवर से क्या तात्पर्य है? आप इसे कैसे चेक करेंगे? What do you understand by the term - RESOLVING POWER OF A LENS ? How do you check it as a camera buyer ?



\3. यदि कोई डिजिटल कैमरा पूर्ण अंधकार में भी फोटो खींच लेता है तो वह ऐसा क्यों कर पा रहा है? If a camera is taking photograph in complete darkness, how is it able to do so? What is causing the exposure on the CCD / Film ?



4. लेंस के डायमीटर और कैमरे के मेगा पिक्सल में ज्यादा किसका महत्व है और क्यों? Which is more important ? Dia. of the front element of a lens or the number of mega pixals? Can you explain why?



5. 6 एम.एम. फोकल लेंग्थ की लेंस वाइड / नॉर्मल / टेली में से कौन सी मानी जायेगी? What is a 6 mm. focal length lens ? Wide / normal or tele ?



6. एफ़ 4 और एफ़ 11 में किसमें अधिक प्रकाश फिल्म तक पहुंचता है? Which setting will ensure more light to the film - f 4 or f 11 ?



7. एपर्चर बदलने से फिल्म पर पहुंचने वाले प्रकाश की मात्रा को कम या अधिक किया जा सकता है - यह आपको बताया गया है। क्या एपर्चर बदलने से इसके अलावा आपकी फोटो में कुछ और भी अन्तर आता है? (यह बोनस प्रश्न है - इसका उत्तर देने वाले शिक्षार्थी को क्लास का मॉनीटर नियुक्त किया जायेगा !!!!) Controlling aperture controls the exposure. What else it affects on?



8. आपके पास कौन सा कैमरा है, इसका परिचय दें। अपनी खींची हुई दो-दो फोटो भी

                                      किसी अंधेरे बंद कमरे में यदि प्रकाश के लिये केवल एक खिड़की हो तो हम समझ ही सकते हैं कि खिड़की जितनी बड़ी होगी, कमरे में उतना ही अधिक प्रकाश होगा - विशेषकर खिड़की के ठीक सामने पड़ने वाली दीवार पर ! कोई खिड़की सामने वाली दीवार को कितना प्रकाशित कर पायेगी यह इस बात पर भी निर्भर करेगा कि खिड़की और दीवार के बीच में कितनी दूरी है। छोटे कमरे को प्रकाशित करने के लिये छोटी खिड़की पर्याप्त रहेगी, कमरा बड़ा हो तो खिड़की भी बड़ी करनी पड़ेगी । ठीक है न?
                                 हमारा कैमरा भी एक अन्धेरा बंद कमरा है और उसकी लेंस वह खिड़की है जिससे प्रकाश सामने वाली दीवार पर पहुंचता है। ’सामने वाली दीवार’ यानि - फिल्म (film) (आजकल के डिजिटल कैमरों में फिल्म की जगह पर सी.सी.डी (CCD) लगा दी गई है।)
                              बहुत सस्ते कैमरों मे इस लेंस रूपी खिड़की को छोटा या बड़ा नहीं किया जा सकता है। दुकानदार आपके कैमरे में फिल्म डाल देता है और कहता है कि धूप में फोटो अच्छी आयेंगी। कुछ बेहतर कैमरों में एक छोटा सा लीवर लगा दिया गया और कहा गया कि तेज धूप हो तो इस लीवर को सूरज के निशान पर कर देना और बादल हों तो बादल के निशान के आगे कर के फोटो खींच लेना, अच्छी फोटो आ जायेगी। यह लीवर वास्तव में लेंस को कम या अधिक खोलने के लिये हुआ करता था। इसे लेंस का एपर्चर (aperture) बदलना कहा जाता है। एपर्चर जितना ज्यादा खुला हुआ हो, उतना ही अधिक प्रकाश फिल्म पर पहुंचेगा। यह एपर्चर हमारी आंख में भी होता है जिसे iris कहते हैं। कम प्रकाश में हमारी आंख का iris अधिक खुल जाता है और धूप में यह न्यूनतम खुलता है। यह आटोमैटिक एपर्चर है जो विधाता ने हमें दिया है।
                            लोगों की इच्छायें बढ़ती गयीं तो लेंस के एपर्चर में इतने परिवर्तन की व्यवस्था हो गयी कि सूर्य के प्रकाश से लेकर मोमबत्ती तक के प्रकाश में फोटो खींचना संभव हो गया।
                                      सूर्य के प्रकाश में फोटो खींचनी हो तो एपर्चर बिल्कुल कम कर दो और यदि मोमबत्ती के प्रकाश में चित्र चाहिये तो एपर्चर पूरा खोल दो! आपके कैमरे की लेंस पर यदि 1.4, 2, 2.8, 4, 5.6, 8, 11, 16, 22, 32 आदि आदि अंक लिखे हुए हैं तो ये एपर्चर की विभिन्न सेटिंग्स हैं। पर आपकी उम्मीद के सर्वथा विपरीत, 1.4 अधिकतम एपर्चर है और 32 न्यूनतम एपर्चर है अर्थात मामला उलटा है। ऐसा क्यों है, इस गहराई में जाकर मामले को बोझिल बनाना यहां आवश्यक नहीं है। यदि आपका कैमरा डिजिटल है तो आपकी लेंस पर ऐसी कोई सेटिंग्स नहीं दिखाई देंगी परन्तु आपके एल.सी.डी (LCD) स्क्रीन पर ये नम्बर दिखाई दे सकते हैं । यदि आपके डिजिटल कैमरे में एपर्चर बदलने की स्वतंत्रता दी गयी है तो ये सैटिंग्स अवश्य मिलेंगी।
                                          यह कतई आवश्यक नहीं है कि हर लेंस पर 1.4 से लेकर 32 तक सारे के सारे एफ स्टॉप f stops उपलब्ध हों । अरे हां, इन संख्याओं को एफ स्टॉप ( f stops ) कहा जाता है। हो सकता है कि आपकी लेंस पर ये एफ स्टॉप 2.8 या 4 या 5.6 से आरंभ हों तथा 22 या 32 तक न जाकर 16 या 11 पर ही समाप्त हो जायें। जो कैमरे बहुत सस्ते हुआ करते थे उनकी लेंस पर तो केवल दो एफ स्टॉप थे - 8 और 11 । 8 का प्रयोग बादल के लिये कर लो और 11 का उपयोग तेज़ धूप के लिये ! 8 लिखने के स्थान पर बादल का चित्र बना होता था और 11 के स्थान पर सूर्य का चित्र बना दिया जाता था। पर ये गये जमाने की बात है। अब हम बहुत सौभाग्यवान हैं कि हमें बहुत उचित मूल्य पर ऐसे कैमरे उपलब्ध हैं जिनको देख कर ही पुराने जमाने को फोटोग्राफर का तो खुशी के मारे हार्टफेल ही हो जाता।
                            यदि आप कम प्रकाश में फोटोग्राफी करना चाहते हैं तो लेंस एपर्चर lens aperture को यथा संभव खोलने से फिल्म या सीसीडी तक पहुंचने वाला प्रकाश बढ़ जायेगा व आप कम प्रकाश में भी फोटो खींच पायेंगे।
                              आजकल के लगभग सभी कैमरों में एक्सपोज़र मीटर (exposure meter) लगा दिये गये हैं जो प्रकाश की मात्रा के अनुसार कैमरे की लेंस का एपर्चर नियंत्रित (aperture control with the help of photo-sensitive cells) करने लगे हैं। जब आप फोटो ऑटो मोड auto mode पर खींचते हैं तो आपकी लेंस का एपर्चर कितना हो - यह कैमरा खुड ही तय करने लगता है। 
                                 वर्ष 1876 में पहला चित्र जब खींचा गया था तो उस इमेज को फिल्म पर रेकार्ड करने के लिये 8 घंटे लगे थे। कोई इंसान तो इस प्रयोग के लिये बलि का बकरा बनने के लिये तैयार हुआ नहीं, अतः धूप में कुछ सामान मेज पर सजा दिया गया था और सुबह से शाम तक के लिये कैमरा स्टैंड पर लगा कर छोड़ दिया गया था। शाम तक एक कामचलाऊ चित्र मिल गया तो उस एक्सपेरिमेंट करने वाले व्यक्ति की खुशी का कोई ठिकाना न था। (यदि कोई वॉलंटियर मिल भी जाता तो 8 घंटे तक बिना हिले डुले कैसे बैठ सकता था ?, है न? ) 
                                            इस सफलता के बाद, स्वाभाविक रूप से अगला लक्ष्य था फिल्म पर लगाये गये कैमिकल (Light sensitive chemical )को इतना सेंसिटिव बनाना कि वह इमेज रेकार्ड करने में इतना समय न ले। प्रगति की राह पर बढ़ते बढ़ते आज रसायन विज्ञान उस बिंदु पर पहुंच गया है कि हमारा कैमरा आठ घंटे नहीं बल्कि 1/12000 सेकेंड में भी सुंदर चित्र खींच लेता है। मेरा गणित में हाथ कुछ तंग है - आप गणना करके बतायेंगे कि 8 घंटे और 1/12000 सैकेंड में परस्पर क्या संबंध है ? 
                                               आपने कभी ऐसे फोटोग्राफर से फोटो खिंचवाई है जो एक बड़े से डब्बे के पीछे काला कपड़ा सिर पर डाल कर कुछ काला जादू सा करता रहता है फिर आपसे कहता है कि "हिलना मत" और लेंस के आगे लगे हुए ढक्कन को हटाता है, चिड़िया सी उड़ाता है और ढक्कन को वापिस लेंस पर लगा देता है ? वह काला डब्बा निश्चय ही एक पुराने जमाने का कैमरा हुआ करता था। आठ घंटे तो नहीं, हां 2 या 3 सेकेंड का समय इस कैमरे को चाहिये होता था आपकी फोटो खींचने के लिये। लेंस का ढक्कन हटने से लेकर ढक्कन वापिस लगाने तक का समय अंदाज़े से दिया जाता था। फोटोग्राफर होशियार होता था तो वह स्टॉप वाच की सहायता लेता था। 
                                जब फिल्म और फास्ट बनने लगीं तो कैमरे पर मेकेनिकल शटर (Mechanical shutter) की आवश्यकता महसूस होने लगी क्योंकि 1/15 या 1/60 सेकेंड का समय अंदाज़े से तो दिया नहीं जा सकता है। जब 1/1000 सेकेंड तक का समय भी पर्याप्त होने लगा तो मेकेनिकल शटर के स्थान पर इलेक्ट्रॉनिक शटर (electronic shutters) लगाये जाने लगे।  
                                     जब फिल्म और फास्ट बनने लगीं तो कैमरे पर मेकेनिकल शटर (Mechanical shutter) की आवश्यकता महसूस होने लगी क्योंकि 1/15 या 1/60 सेकेंड का समय अंदाज़े से तो दिया नहीं जा सकता है। जब 1/1000 सेकेंड तक का समय भी पर्याप्त होने लगा तो मेकेनिकल शटर के स्थान पर इलेक्ट्रॉनिक शटर (electronic shutters) लगाये जाने लगे। 
                                                 आज एक अच्छा कैमरा 30 सेकेंड से लेकर 1/4000 सेकेंड के मध्य कोई सी भी शटर सेटिंग चुनने की स्वतंत्रता देने लगा है। जब प्रकाश बहुत अधिक हो तो 1/4000 या 1/2000 सेकेंड का समय निश्चित कर लें और यदि आधी रात को चंद्रमा के प्रकाश में फोटो खींचनी हो तो समय अंतराल को 30 सेकेंड तक बढ़ाने की सुविधा उपलब्ध है। हो सकता है आपके कैमरे में उच्चतम सीमा 1/1000 सेकेंड हो व न्यूनतम सीमा 1 सेकेंड हो। 
                                   न्यूनतम समय में इमेज रेकार्ड कर पाने का एक अतिरिक्त फयदा यह हो गया है कि अब हमें किसी से यह कहने की आवश्यकता नहीं पड़ती कि - "हिलना मत" । कोई कितना ही हिल-डुल ले, 1/4000 सेकेंड में कितना हिल पायेगा ? 1/12000सेकेंड में तो बंदूक से निकली गोली के भी चित्र खींचना संभव हो गया है। इतना कम समय सेट करते हुए तो आप सरपट दौड़ती हुई बुलेट ट्रेन का भी चित्र खींचेंगे तो वह शांति से चुपचाप खड़ी हुई अनुभव होगी ! (हां, इतना अवश्य है कि आपकी फिल्म इतनी फास्ट होनी चाहिये कि इतने सूक्ष्म समय में भी इमेज रेकार्ड कर सके)

    आपकी फिल्म कितनी फास्ट है? 

                                   जैसा कि ऊपर जिक्र किया था, इमेज रेकार्ड करने के लिये फिल्म को कितना समय चाहियेगा यह इस बात पर निर्भर करता है कि उस पर लगाया गया कैमिकल कितना सेंसिटिव है। ज्यादा सेंसिटिव फिल्म है तो कम समय में भी चित्र ले लेगी। स्लो फिल्म को अधिक समय चाहिये। अधिक समय देने का उपाय यह है कि कैमरे का शटर स्लो कर दिया जाये। 1/1000 सेकेंड की तुलना में 1/60 सेकेण्ड बहुत स्लो माना जायेगा! है न ? 
                                      बाज़ार में कोडक (Kodak), फ्यूजी (Fuji), कोनिका (Konika) आदि - आदि ब्रांड की अनेकानेक फिल्म उपलब्ध हैं। ब्रांड कोई भी हो, पर फिल्म की सेंस्टिविटी की दृष्टि से सब बिल्कुल एक जैसी रखी गयी हैं। (All brands of films have same sensitivity ratings) फिल्म की सेंस्टिविटी नापने की यूनिट तय की गई है - ए एस ए (ASA - stands for American Standards Association) । (अब कुछ वर्षों से इसे बदल कर आई एस ओ (ISO - stands for International Standards Organisation) कर दिया गया है, पर बात एक ही है)। कोई जमाना था जब 15 ASA की फिल्म भी फास्ट मानी जाती थी । अब 6400 ASA की फिल्म भी बन रही हैं। वैसे हमारे देश में छोटे-बड़े सभी शहरों में 100 ASA से लेकर 400 ASA तक की फिल्में उपलब्ध हैं। 400 ASA की फिल्म 100 ASA की तुलना में चार गुनी फस्ट है। (400 ASA film is four-times faster than 100 ASA film) अर्थात्* 100 ASA फिल्म को यदि 1/125 सेकेंड का समय चित्र खींचने के लिये चाहिये तो 400 ASA फिल्म को 1/500 सेकेंड का समय देना पर्याप्त है।  
                                   अब सवाल ये कि आपको 100 ASA / 200 ASA / 400 ASA के उपलब्ध विकल्पों में से कौन सी फिल्म खरीदनी चाहिये? यदि आपको अपने घर के सदस्यों की, प्राकृतिक दृश्यों की फोटो चाहियें तो 100 ASA ए एस ए को प्राथमिकता दें क्योंकि फिल्म जितनी स्लो हो, वह उतने ही बड़े एन्लार्जमेंट बनाने में सक्षम है। (Slower films enable you to make bigger enlargements of your photographs without apparent loss of quality) यदि फास्ट एक्शन fast action रेकॉर्ड करना है (जैसे खेल कूद आदि) तो 400 ASA उपयुक्त रहेगी। फास्ट फिल्म से एन्लार्जमेंट बनवाये जायें तो उनमे ग्रेन दिखाई देते हैं। (Faster films tend to give grainier results) आपने अक्सर देखा होगा कि टी वी पर सिग्नल कमज़ोर हों तो स्नो दिखाई देती है। लगभग वैसी ही फोटो फास्ट फिल्म की भी होती हैं। इसीलिये 400 ASA से ऊपर की फिल्में लोकप्रिय नहीं हैं । जितना बड़ा एन्लार्जमेंट बनवाओ, उतना ही ग्रेन भी बड़े होते चले जाते हैं । 5" x 7" तक तो ग्रेन का आभास नहीं होता, पर इससे बड़ा साइज का प्रिंट बनवाया जाये तो ग्रेन दिखाई देने लगते हैं। (वैसे फिल्म तकनीक में भी बहुत सुधार हुए हैं। आज से दस साल पहले की 400 ASA फिल्म की तुलना में आज की 400 ASA फिल्म कहीं बेहतर है।
 कितनी शटर स्पीड रखनी चाहिये ?
                              यदि आपके कैमरे में ऑटो मोड (auto mode) है तो कितना एपर्चर aperture व कितनी शटर स्पीड (shutter speed) रखी जाये यह कैमरा खुद ही तय कर देता है। पर यदि ऑटो मोड पर कैमरा 1/60 सेकेंड से अधिक समय देने जा रहा है (प्रकाश कम होने के कारण) तो आजकल के कैमरे आपको 'कैमरा-शेक' वार्निंग (camera shake warning) देते हैं। क्या आपको पता है कि यह वार्निंग किस लिये मिलती है? वास्तव में, जिस समय कैमरे का शटर खुला हुआ है और फिल्म पर चित्र रेकार्ड हो रहा है, उस समय कैमरा या सब्जेक्ट - दोनो में से कोई भी एक हिल जाये तो फिल्म पर उस समय रेकॉर्ड हो रही इमेज भी हिली हुई नज़र आती है व सही कहें तो खराब ही हो जाती है। While the shutter is open and the image is being formed on the film/CCD, movement of either the camera or the subject causes a blurred image which is often considered as ruined.) यदि कैमरा स्टैंड पर फिक्स किया हुआ है और चित्र भी आप ताजमहल का ले रहे हैं तो आप चाहे तो 30 सेकेंड तक शटर खोल कर रखे रहें - कैमरा या ताजमहल - दोनो में से कुछ भी नहीं हिलने वाला है। पर सड़क चलते व्यक्तियों की फोटो खींच रहे हैं तो 1/250 सेकेंड से अधिक समय देने पर फोटो हिल सकती है। यदि आपका सब्जेक्ट खुद ही फोटो खिंचवाने को उत्सुक है तो वह स्थिर रहने का प्रयास करेगा - ऐसे में 1/30 सेकेण्ड का समय भी चल जायेगा। भागती हुई ट्रेन की फोटो चाहिये तो 1/1000 सेकेंड शटर स्पीड उचित ही है। फुटबॉल मैच की फोटोग्राफी करनी हो तो भी 1/1000 सेकेण्ड का समय फास्ट एक्शन को रोक पायेगा।
                         मूल बात ये है कि यदि फोटो खींचने के दौरान आपका हाथ हिले या वह व्यक्ति हिल जाये जिसकी फोटो खींच रहे हैं तो फोटो खराब हो जाती है। इसलिये फास्टेस्ट पॉसिबिल शटर स्पीड सेट करने का प्रयास करना चाहिये। (As a rule, choose fastest shutter speed possible in the circumstances subject to availability of the light to avoid camera shake.) 
यदि आप डिजिटल कैमरे के मालिक हैं तो आपको हार्दिक बधाई क्योंकि आप्को फिल्म खरीदने से तो मुक्ति मिल ही चुकी है साथ ही, आप अपने कैमरे में ही ASA / ISO सैटिंग भी तय कर सकते हैं । हुर्रे ! अलग अलग कंपनियों के अलग - अलग मॉडल के कैमरों में अलग-अलग ASA/ISO दी गई है। अधिक प्रकाश उपलब्ध हो तो न्यूनतम ASA सैट करके फोटो लीजिये। प्रकाश कम हो और कैमरा शेक का खतरा बढ़ रहा हो तो ASA बढ़ा दीजिये। आपको लगेगा कि आपने 100 ASA की फिल्म निकाल कर 400 या 800 ASA की फिल्म कैमरे में लोड कर ली है। (You will feel as if you have replaced your slower 100 ASA film with a much faster 400 or 800 ASA film. Results will have pronouced grain but atleast you will avoid the blur. ) ग्रेन तो बढ़ जायेंगे पर चित्र हिलेगा नहीं! 
8. क्या आपने अपने कैमरे को समझ लिया है?
* क्या एपरचर व शटर सैट किये जायें?

* क्या आपके चित्र की विषयवस्तु गतिशील है?

* आपके चित्र का सबसे महत्वपूर्ण अंग क्या है?

* कितना प्रकाश चाहिये?
फोटो की विषय-वस्तु क्या है?

* एक व्यक्ति

* ग्रुप फोटो

* बच्चे

* महिलायें

* प्राकृतिक सौन्दर्य

* नागरिक जीवन

* निर्जीव वस्तुएं
फोटोग्राफी भौतिक विज्ञान व रसायन विज्ञान के सिद्धांतों के आश्रय पर खड़ी है । इसीलिये कहा जाता है कि फोटोग्राफी ५०% विज्ञान है और ५०% कला। कैमरे का सर्वोत्तम उपयोग कर सकने के लिये जितना जानना आवश्यक है, केवल उतना ही इस कॉलम में बताया जायेगा। अनावश्यक रूप से गहराई में जाने की हमें आवश्यकता नहीं है। हमें कार चलानी सीखनी है, मोटर मेकेनिक थोड़ा ही बनना है ! है न ? 
                           यदि आप में से कुछ लोग फोटोग्राफी में रुचि रखते हैं - मुझे निम्न जानकारी दें ताकि आपके लिये जो उपयोगी हो सके, वह ट्यूटोरियल (Tutorial) आपकी सेवा में समर्पित कर सकूं।
                         आपके पास कैसा कैमरा है - डिजिटल / फिल्म कैमरा / मोबाइल फोन (Digital/Analog/Mobile phone)

                                    आप किन किन वस्तुओं की फोटो खींचने में रुचि रखते हैं - परिवार की (इनडोर / आउटडोर) (Indoor / Outdoor photography) / प्राकृतिक दृश्य (Scenery) / यदि किसी अन्य विषय में रुचि हो तो बतायें । (Any other subject ?)   
                    फोटोग्राफी वर्तमान युग के महानतम आविष्कारों में से एक है। आज फोटोग्राफी हमारे जीवन के हर क्षेत्र को स्पर्श कर रही है। ज्ञान विज्ञान, शिक्षा, जन-संपर्क, सूचना प्रौद्योगिकी या मनोरंजन, जिधर भी देखिये, हर जगह फोटोग्राफी का ही सदुपयोग होता नज़र आयेगा । अंतरिक्ष में भेजे गये उपग्रह धरती की सतह व भीतर के चित्र वैज्ञानिकों के लिये भेजते हैं, हॉलीवुड और बॉलीवुड के नाम पर चलचित्रों की जिस दुनिया से हम परिचित हैं - वह सब फोटोग्राफी पर ही तो टिकी हुई है। हर घर में रखा हुआ बुद्धू बक्सा, यानि टीवी हमें जो कुछ परोसता है, वह सब फोटोग्राफी नहीं तो और क्या है? आज अमिताभ, ऐश्वर्या राय को हम जानते हैं तो क्या इसका श्रेय फोटोग्राफी को ही नहीं जाता ? पुस्तकों, समाचार पत्रों - पत्रिकाओं का मुद्रण फोटोग्राफी तकनीक के ही कारण तो संभव हो पा रहा है (ऑफसेट प्रेस व स्क्रीन प्रिंटिंग दोनो ही के पीछे फोटोग्राफी के सिद्धान्त कार्य कर रहे हैं।) एक्स-रे, अल्ट्रा-साउंड, सी-टी स्कॅन, माइक्रोस्कोप आदि के पीछे भी फोटोग्राफी ही है। 
                 एक उत्कृष्ट हॉबी व आकर्षक व्यवसाय के रूप में भी फोटोग्राफी अपना एक विशिष्ट स्थान बना चुकी है। फोटो खींचना और खिंचवाना - ये दोनो आज हॉबी भी हैं और व्यवसाय भी । ऐसा शायद ही कोई और यंत्र हो जिसके आगे भी और पीछे भी - कहीं भी खड़े हो कर आप नाम, पैसा और अपार शोहरत कमा सकते हैं! ललित कला के रूप में यह हमारे आपके जीवन को मनभावन रंगों से भर देती है वहीं व्यवसाय के रूप में आज फोटोग्राफी जीविका के अनेकानेक मार्ग खोल देती है। फोटोग्राफी का अध्ययन करने के बाद फोटो स्टुडियो, पत्रकारिता, मेडिकल व साइंटिफिक फोटोग्राफी, मैक्रो एवं माइक्रो फोटोग्राफी, आर्किटेक्चरल फोटोग्राफी, स्पोर्ट्स व वाइल्ड लाइफ फोटोग्राफी, स्पेस फोटोग्राफी, टीवी व फिल्म इंडस्ट्री हेतु फोटोग्राफी व सिनेमाटोग्राफी, प्रोडक्ट मॉडलिंग, फैशन व कॉमर्शियल फोटोग्राफी, एडिटोरियल फोटोग्राफी - ऐसे अनेकानेक क्षेत्र आपके लिये खुल जाते हैं जहां रोज़गार की संभावनायें अनन्त हैं। मास-कम्युनिकेशन के क्षेत्र में रुचि रखने वालों के लिये तो फोटोग्राफी का ज्ञान किसी वरदान से कम नहीं है। यदि आप मल्टीमीडिया के क्षेत्र में हैं तो बिना फोटोग्राफी सीखे आपका ज्ञान अधूरा ही है। डिजिटल कैमरों के आने के बाद तो कैमरे और कंप्यूटर के बीच की सीमा रेखा ही समाप्त हो गयी लगती है। मल्टीमीडिया मोबाइल सैट ने तो कैमरे को हर व्यक्ति की पॉकेट में पहुंचा दिया है।
1. फोटो खींचने के पीछे क्या उद्देश्य है?

* मनोरंजन हेतु
* अभिलेख हेतु
* किसी घटना की जानकारी देने हेतु
* किसी व्यक्ति का परिचय देने हेतु
* किसी वस्तु का परिचय देने हेतु
* प्रशिक्षण देने हेतु
* वैज्ञानिक खोज व अनुसंधान हेतु
* विज्ञापन हेतु
* किसी घटना या कार्यक्रम की मधुर स्मृति संजोने हेतु
* चित्र कथा हेतु
* अन्य किसी उद्देश्य के लिये

2. कौन सा कैमरा उपयोग किया जाये ?
* विभिन्न प्रकार के कैमरे
* विभिन्न लेंस
* विभिन्न फिल्म
* डिजिटल कैमरा

3. फोटो की विषय-वस्तु क्या है?
* एक व्यक्ति
* ग्रुप फोटो
* बच्चे
* महिलायें
* प्राकृतिक सौन्दर्य
* नागरिक जीवन
* निर्जीव वस्तुएं

4. फोटो कहां पर खींची जाये ?
* लोकेशन फोटोग्राफी
* स्टूडियो फोटोग्राफी

5. फोटो का आकार एवं फाॅर्मेट
* क्या फोटो किसी विशेष आकार में चाहिये ?
* क्या फोटो किस विशेष फार्मेट में चाहिये ?

6. प्रकाश व्यवस्था
* प्रकाश के प्राकृतिक स्रोत
* प्रकाश के कृत्रिम स्रोत
* प्रकाश के विभिन्न गुण
* प्रकाश कितना है?
* प्रकाश का रंग
* प्रकाश किस कोण व दिशा से आ रहा है?
* क्या प्रकाश के अन्य स्रोत भी उपलब्ध हैं?

7. चित्र में क्या शामिल करें, क्या नहीं ?

8. क्या आपने अपने कैमरे को समझ लिया है?
* क्या एपरचर व शटर सैट किये जायें?
* क्या आपके चित्र की विषयवस्तु गतिशील है?
* आपके चित्र का सबसे महत्वपूर्ण अंग क्या है?
* कितना प्रकाश चाहिये?

9. क्या शटर दबाने का सही समय यही है?
10. क्या आपको अपना मनपसन्द चित्र मिल गया?

१- फोटोग्राफी की तकनीक समझने में कितनी रुचि है? How much do you wish to learn about the photography technique? बहुत सारे लोग ऐसे हैं जिनको न तो फोटोग्राफी तकनीक के बारे में कुछ पता है और न ही जानने की इच्छा / धैर्य है । उनको तो ’देखो और बटन दबाओ’ (aim and shoot simplicity) कैमरा ही चाहिये। दूसरी ओर कुछ लोग ऐसे हैं जो जिज्ञासु प्रवृत्ति के हैं । ऐसे लोग मोटर साईकिल भी खरीदेंगे तो उसका मैनुअल जरूर पढ़ेंगे । "देखो और दबाओ" कैमरे दो प्रकार के हैं - एक तो वो जिनको फिक्स्ड फोकस (fixed focus or box camera) या बॉक्स कैमरा कहा जाता था। एक जमाना था कि आग्फा (Agfa) कंपनी के २००-३०० रुपये मूल्य के बॉक्स कैमरे (Agfa Klik III, Agfa Isoly) जन्म दिन पर उपहार स्वरूप पाकर हृदय गदगद्* हो जाता था । लोग उन सीधे साधे कैमरों से भी इतनी अच्छी फोटो खींच लेते थे कि अंतरराष्ट्रीय फोटोग्राफी प्रतियोगिता (International photography competitions) में सांत्वना पुरस्कार (consolation prizes) तो ले ही आते थे। इन कैमरों में शटर (shutter) दबाने के अलावा और कुछ कंट्रोल होता ही नहीं था। लेंस भी कांच की न होकर प्लास्टिक की थी। ये कैमरे श्वेत-श्याम युग (black and white photography) का प्रतिनिधित्व करते थे। आज इन कैमरों की महत्ता म्य़ुज़ियम में सजाने तक ही है। डिजिटल क्रांति आने के बाद तक भी जो फिल्म वाले फिक्स्ड फोकस बॉक्स कैमरे बहुत अच्छे (व सस्ते) माने जाते थे व मुझे सबसे अधिक प्रभावित करते थे - वह थे - कोडक कंपनी का ’क्रोमा’ कैमरा (Kodak Kroma) और याशिका कंपनी क ’एम एफ २ सुपर’ कैमरा (Yashika MF 2 Super camera) ! १५०० रुपये से २००० रुपये की कीमत में इनसे अच्छा कैमरा मेरी जानकारी में कोई नही है। इनकी लोकप्रियता कम होने का कारण सिर्फ़ ये है कि आज डिजिटल युग में कोई सा भी फिल्म कैमरा लोकप्रिय नहीं रह गया है। ये डिजिटल कैमरों के युग से पहले के बाशिंदे हैं ।

दूसरी ओर, "देखो और दबाओ" सुविधा हर प्रकार की नवीनतम तकनीक से सुसज्जित महंगे डिजिटल कैमरे भी प्रदान करते हैं । आप कैमरे को ऑटो मोड (Auto mode) पर डाल दें तो कैमरे के अंदर मौजूद इलेक्ट्रॉनिक सर्किट (Electronic Circuit) हर अड्जस्ट्मैंट की जिम्मेदारी अपने ऊपर ले लेता है और आपको "देखो और दबाओ" स्वतंत्रता (Aim and shoot simplicity) प्रदान कर देता है। हद ये है कि कुछ नवीनतम मॉडल के कैमरों में तो चेहरा पहचानने (Face detection technology) व मुस्कुराहट पहचानने (Smile Detection technology) की भी तमीज़ है । जब तक आप बत्तीसी नहीं दिखायेंगे, कैमरा फोटो ही नहीं खींचेगा! (नेता लोग ऐसे ही कैमरों से फोटो खिंचवाना पसंद करने लगे हैं ताकि सुबह अखवार में उनकी भुवन-मोहिनी मुस्कान पाठकों का स्वागत करे! कोई मुआ पत्रकार मंच पर सोते हुए नेताजी की फोटो अपने अखबार को न भेज दे! )। इस कैमरे को फोटोग्राफी में पारंगत किसी फोटो कलाकार के हाथ में दे दीजिये तो वह सारे कंट्रोल ऑटो (auto) के बजाय मैनुअल (manual) कर देगा और फिर कैमरे के कंट्रोल से ऐसे खेलेगा जैसे कोई पेंटर ब्रश और रंगों से खेलता है। निश्चय ही ये कैमरे लगभग १०,००० रुपये के आस पास मूल्यवर्ग से आरंभ होते हैं और इनका मूल्य कितना हो सकता है, इसकी कोई सीमा नहीं है। लगभग सभी विख्यात कैमरा निर्माता कंपनियां ऐसे कैमरे लेकर बाज़ार में मौज़ूद हैं । सोनी ( Sony ), कॅनन ( Canon ), निकॉन ( Nikon ) , ओलिंपस ( Olympus ), मिनोल्टा ( Minolta ), पेंटैक्स ( Pentax )आदि-आदि कंपनियों के अनेकानेक मॉडल के कैमरे बाज़ार में उपलब्ध हैं। इनमे किसी भी कंपनी को दूसरी से कमतर या बेहतर बताना अत्यंत कठिन है। मामला व्यक्तिगत पसंद, नापसंद का आ जाता है । कोडक Kodak के बारे में जरूर कहूंगा कि उसके बनाये हुए Kodak Easy Share डिजिटल कैमरे मुझे प्रभावित करने में पूर्णतः असमर्थ रहे हैं । अतः यदि आप मेरी पसंद-नापसंद को कुछ अहमियत देना चाहते हैं तो डिजिटल कैमरों में कोडक छोड़ कर कोई सी भी कंपनी का कैमरा चुन लें।
फोटोग्राफी क्लासरूम - चार एक्सपोज़र मोड (Learn Photography - The Four Exposure Modes on Camera)


                             अब आपको ये तो स्पष्ट हो ही चुका होगा कि फिल्म / सी.सी.डी. को कितना एक्सपोज़र मिलेगा यह चार तत्वों पर निर्भर करता है। ये चार तत्व हैं:
- प्रकाश कितना है? How much is the intensity of light ?(धूप है या छाया है? /

बल्ब १०० वाट का है या १००० वाट का?) 

OF LENS APERTURE OR F-NUMBER
The aperture range of a lens refers to the amount that the lens can open up or close down to let in more or less light, respectively. Apertures are listed in terms of f-numbers, which quantitatively describe relative light-gathering area (depicted below).

Note: Aperture opening (iris) is rarely a perfect circle,
due to the presence of 5-8 blade-like lens diaphragms.
                                     The focal length of a lens determines its angle of view, and thus also how much the subject will be magnified for a given photographic position. Wide angle lenses have short focal lengths, while telephoto lenses have longer corresponding focal lengths.

                        Lens Focal Length*TerminologyTypical Photography

Less than 21 mmExtreme Wide Angle
Architecture

21-35 mmWide AngleLandscape

35-70 mmNormalStreet & Documentary7

0-135 mmMedium TelephotoPortraiture

135-300+ mmTelephotoSports, Bird & Wildlife
 - एपर्चर कितना खोला गया है? What is the aperture setting ? (लेंस का एपर्चर जितना अधिक खुला होगा उतना ही अधिक प्रकाश फिल्म पर पहुंचेगा। )
- शटर स्पीड कितनी रखी गयी है? What shutter speed has been chosen ?(जितने अधिक समय तक शटर खुला रहेगा, फिल्म पर उतना ही अधिक प्रकाश पहुंचेगा।)
- फिल्म कितने ASA की है? What is the ASA/ ISO rating of the film? (जितनी फास्ट फिल्म होगी, उतनी ही जल्दी एक्सपोज़ होगी।)
अब कल्पना करें कि:
. आप दिन में ताजमहल की फोटो खींचना चाहते हैं। इसका मतलब प्रकाश तो जितना है सो है - आप शाम होने की या सूर्य के आगे बादल आने की प्रतीक्षा करें तो बात अलग है अन्यथा हम प्रकाश की मात्रा को अपरिवर्तनीय मान कर चल सकते हैं।
. आपने कैमरे में 100 ASA की फिल्म डाली हुई है। अब फिल्म भी जो है सो है - यह भी अपरिवर्तनीय मान लें। (मानता हूं कि डिजिटल कैमरे में आप ASA रेटिंग कम ज्यादा कर सकते हैं - कल ही तो आपको बताया है, पर कुछ समय के लिये मान लीजिये कि ऐसा कुछ नहीं है)

 कैमरे में मुख्यतः चार प्रकार की सेटिंग्स हो सकती हैं Cameras may have basically four types of exposure settings :-

. मैनुअल MANUAL (This is shown as M ) (इसमें शटर स्पीड और एपर्चर - दोनो आप ही सेट करते हैं । यदि आपके कैमरे में इलेक्ट्रॉनिक एक्स्पोज़र मीटर exposure meter लगा हुआ हो तो भी, वह सिर्फ इंडिकेशन दे सकता है कि वर्तमान शटर/एपर्चर ठीक हैं या कम ज्यादा हैं परंतु कैमरा उनमे से किसी को भी स्वयं नहीं बदल सकता । Even if there is an exposure meter in your camera, in MANUAL mode, camera can merely indicate whether the exposure is correct or not.
. एपर्चर को प्राथमिकता APERTURE PRIORITY (This is shown as A or Av - Aperture / Aperture value- इस सेटिंग में आप एपर्चर स्वयं तय करेंगे और आप द्वारा तय की गई एपर्चर सेटिंग व उपलब्ध प्रकाश के हिसाब से शटर स्पीड कैमरा स्वयं तय करेगा। In Aperture Priority mode, the camera permits you to choose an aperture ( f stop) of your choice. Depending upon the amount of light available, the camera will try to select the optimum shutter speed for you
 . शटर स्पीड को प्राथमिकता - SHUTTER PRIORITY (This is shown as S or Tv - Shutter / Time value इस सेटिंग पर आप अपने कैमरे में शटर स्पीड खुद सेट करते हैं । उसके बाद उपलब्ध प्रकाश के हिसाब से एपर्चर कितना खोला जाये, यह कैमरा खुद तय करता है। In SHUTTER PRIORITY mode, the camera permits you to choose a shutter speed (Time Value). Depending upon the amount of light available, the camera will try to select the optimum aperture for you.)
All the above three modes are also referred to as CREATIVE ZONE because these modes leave the expert photographers a choice to prove their creativity.

. प्रोग्राम ऑटो या फुल ऑटो PROGRAMMED AUTO (Indicated as P ) or FULL AUTO (Indicated usually as a green or red coloured Camera icon) - इन सेटिंग्स पर कैमरा उपलब्ध प्रकाश के हिसाब से शटर व एपर्चर स्वयं ही तय करता है। आज कल के हाई-फाई इलेक्टॉनिक कैमरों में इस ऑटो मोड में भी, और आगे बढ़ते हुए, ढेरों ऑप्शन देने लगे हैं - जैसे - पोर्ट्रेट मोड, लैंडस्केप मोड, नाइट मोड आदि-आदि। कैमरा निर्माताओं का कहना है कि उन्होने कैमरे के अंदर कम्प्यूटर फिट किया है व हज़ारों चित्रों का डाटाबेस भी भर रखा है। जब आप कैमरा किसी की ओर तानते हैं तो आपका ये कम्प्यूटरीकृत कैमरा सामने दिखाई देने वाले सीन को अपने डाटाबेस में उपलब्ध चित्रों से मैच करता है तथा जिस पिक्चर से मैच हो जाये, उसकी सेटिंग्स प्रभावी कर देता है। वल्लाह ! क्या बात है! In either of these two settings, camera takes care of shutter / aperture settings itself. Camera is reported to have a computerised database consisting of thousands of ideal pictures taken in variety of situations. When you aim your camera towards someone/something, the camera tries to match your scene with the existing photographs in the available database and selects the best settings for you! Isn't it GREAT !     
                         अब मित्रों, ये आप खुद देखें कि आपके पास जो कैमरा है उस कैमरे में कौन कौन से मोड उपलब्ध हैं। कैमरों में ऊपर की ओर एक गोल डायल होता है जिस पर M, S, A, P or M, Av, Tv, P अक्षर लिखे होते हैं। एक हरे रंग का कैमरा भी बना रहता है जो ऑटो मोड का सूचक है। 
                   जब मैने फोटोग्राफी सीखी थी तो मेरे पास फिल्म वाला Asahi Pentax MX मैनुअल कैमरा हुआ करता था जिसमे सिर्फ मैनुअल मोड था। एपर्चर व शटर दोनो ही मुझे स्वयं तय करने होते थे। एक्स्पोज़र मीटर मुझे सिर्फ गाइड करता था। लगभग दस वर्षों तक मैने उसी कैमरे से प्यार किया । जिस किसी के पास मैं शटर / एपर्चर प्रायोरिटी / ऑटो कैमरे देखता था तो ठंडी आहें भरता था । ज़ूम लेंस भी नहीं थी पर उस समय भी कुछ चित्र ऐसे खींचे गये जो मुझे बहुत प्रिय हैं व जिनको बहुत पसंद किया गया। आज मेरे पास जो भी कैमरे हैं उन सब में चारों एक्सपोज़र मोड उपलब्ध हैं। परन्तु ऑटो का लाभ मुझे सिर्फ वहां दिखाई देता है जहां त्वरित गति से फोटो खींचनी हों और बड़ी तेज़ी से प्रकाश कम ज्यादा हो रहा हो। यदि आप बार-बार शटर-एपर्चर नहीं बदल सकते तो ऐसी परिस्थितियों में ऑटो मोड निश्चय ही सुविधा जनक है।   
                        यदि आपके पास डिजिटल कैमरा है तो या तो उसमे सिर्फ ऑटो मोड होगा या फिर चारों मोड होंगे। ऐसा कोई डिजिटल मॉडल मैने तो नहीं देखा है |

2. कौन सा कैमरा उपयोग किया जाये ?
* विभिन्न प्रकार के कैमरे
* विभिन्न लेंस
* विभिन्न फिल्म
* डिजिटल कैमरा 

दो-दो स्कीन वाले फोन की खामियां और खूबियां



फोन का बड़ा स्क्रीन हर किसी की चाहत होती है। ऐसे में अगर किसी स्मार्टफोन में आपकी इस चाहत को पूरा करने के लिए एक नहीं बल्कि दो दो स्क्रीन हों तो। जी हां, कायोसिरा इको, स्प्रिंट द्वारा बेचे जा रहे एंड्रायइड स्मार्टफोन में एक स्लाइड के बाद इस टच स्क्रीन फोन की दूसरी स्क्रीन भी सामने आ जाती है जो ठीक पहली स्क्रीन की तरह है।


आप इस फोन की दोनों स्क्रीन को अलग-अलग यूज कर सकते हैं। उदाहरण के लिए आप पहले स्क्रीन पर ईमेल को देखते हुए नीचे दूसरी स्क्रीन पर टाइप कर सकते हैं। गेम खेलने या वीडियो देखने के लिए एक आप इस फोन की दोनों स्क्रीन को एक साथ लॉक कर एक दोगुनी बड़ी स्क्रीन का मजा उठा सकते हैं। ये एक गजब का कॉन्सेपट हैं।




लेकिन इस फोन की सबसे बड़ी समस्या इसके 3.5 इंच की स्क्रीन के आसपास का काला फ्रेम है। जब दोनों स्क्रीन एक साथ जुड़ी होती हैं तो इसकी वजह से ध्यान भंग होता है। साथ ही कोई भी वीडियो या फोटो देखने पर उसके बीच में काले रंग की लाइन जरूर दिखाई देती है। और अगर आप फोन की स्क्रीन को होरीजॉनटली रखते हैं तो आप केवल शीर्ष स्क्रीन पर वीडियो देख पाएंगे।

फोन के बाकी डिजाइन को भी कुछ इसी तरह इस्तेमाल कर सकते हैं। इसकी चौड़ाई दो आईफोन के बराबर है। साथ ही इसका वजन भी आईफोन से काफी ज्यादा है। अपनी परिधि और आयताकार आकार की वजह इको आउटडेटेड फोन की तरह नजर आता है। वहीं इसकी दूसरी स्क्रीन को इस्तेमान करने के लिए आपको पहली स्क्रीन को दाईं तरफ स्लाइड करके दबाना पड़ता है। उसके बाद आप पहली स्क्रीन को ऊपर उठा सकते हैं या अगर आप एक बड़ी स्क्रीन चाहते हैं तो आप पहली स्क्रीन को थोड़ा वापस कर बाईं तरफ लॉक कर सकते हैं। ये पूरी प्रक्रिया करने में आपको चिंता लगी रहती है कि कहीं फोन टूट ना जाए।


इस फोन का साउंड अच्छा है लेकिन वेब सर्फिंग करने पर इसकी बैटरी जल्दी खत्म होती है। हालांकि इसके साथ एक और बैटरी मिलती है।


बैटरी टेस्ट करने के पहले परीक्षण में इस फोन से मुश्किल से साढ़े तीन घंटे ही बात हो सकी। दोनों स्क्रीनों का इस्तेमाल कर वेब सर्फिंग, वीडियो देखने, या इसटेंट मैसेजिंग और गेम खेलने पर ये फोन एक अवाज के साथ बंद हो जाता है।

केवल एक स्क्रीन का प्रयोग करने पर आमतौर पर ये फोन 4 घंटे तक चलता है। जबकि कंपनी का दावा है कि फुल चार्ज होने पर फोन 7 घंटे का टॉक टाइम देता है।

इस फोन की कीमत 200 यूएस डॉलर है। ये फोन यह गूगल एंड्राइड के 2.2 वर्जन के साथ आता है। जो कई अन्य हैंडसेट में भी उपलब्ध है। ये स्मार्टफोनों के लिए नवीनतम संस्करण नहीं है। स्प्रिंट का कहना इसका अपडेट वजर्न इस साल आ जाएगा जिससे और इस फोन की स्पीड और तेज हो जाएगी।

मालूम हो कि स्प्रिंट, संयुक्त राज्य अमेरिका की प्रमुख दूरसंचार सेवा प्रदाता है। साथ ही ये कंपनी भारतीय बाजार में प्रवेश करने के लिए विचार कर रही है ताकि वह उच्च तकनीकी सेवाओं के साथ भारतीय दूरसंचार कंपनियों को हरा दे। कंपनी पूरी तरह से भारत में प्रवेश करने के लिए तैयार है। 
डिजिटल कैमरा एक आवश्यक टूल है | डिजिटल कैमरा जब से मोबाईल में आने लगा है एक सर्व सुलभ वस्तु बन गया है | तस्वीर की गुणवत्ता के मामले में मोबाईल कैमरा ,कैमरा डीवाइस का मुकाबला नहीं करता है | जो परिणाम कैमरा डीवाइस में मिलता है वो मोबाइल कैमरे में नहीं मिलता है |


एक डिजिटल कैमरा (या संक्षेप में - डिजिकैम ) एक ऐसा कैमरा है जो डिजिटल रूप में वीडियो या स्टिल फोटोग्राफ या दोनों लेता है और एक इलेक्ट्रॉनिक इमेज सेंसर के माध्यम से चित्रों को रिकॉर्ड कर लेता है.






कई कॉम्पैक्ट डिजिटल स्टिल कैमरे, ध्वनि और मूविंग वीडियो के साथ-साथ स्टिल फोटोग्राफ को भी रिकॉर्ड कर सकते हैं. पश्चिमी बाजार में, डिजिटल कैमरों के 35 mm फ़िल्म काउंटरपार्ट की ज्यादा बिक्री होती है.[1]

डिजिटल कैमरे, वे सभी काम कर सकते हैं जो फ़िल्म कैमरे नहीं कर पाते हैं: रिकॉर्ड करने के तुरंत बाद स्क्रीन पर इमेजों को प्रदर्शित करना, एक छोटे-से मेमोरी उपकरण में हज़ारों चित्रों का भंडारण करना, ध्वनि के साथ वीडियो की रिकॉर्डिंग करना और संग्रहण स्थान को खाली करने के लिए चित्रों को मिटा देना. कुछ डिजिटल कैमरे तस्वीरों में कांट-छांट कर सकते हैं और चित्रों का प्रारंभिक संपादन भी कर सकते हैं. मूल रूप से वे फ़िल्म कैमरे की तरह ही संचालित होते हैं और आम तौर पर चित्र लेने वाले एक उपकरण पर प्रकाश को केंद्रित करने के लिए एक वेरिएबल डायाफ्राम वाले लेंस का प्रयोग होता है. ठीक फ़िल्म कैमरे की तरह इसमें भी इमेजर में प्रकाश की सही मात्रा की प्रविष्टि करने के लिए डायाफ्राम और एक शटर क्रियावली के संयोजन का प्रयोग किया जाता है; एकमात्र अंतर यही है कि इसमें प्रयुक्त चित्र लेने वाले उपकरण, रासायनिक होने के बजाय इलेक्ट्रॉनिक होता है.

PDA और मोबाइल फोन (कैमरा फोन) से लेकर वाहनों तक की श्रेणी के कई उपकरणों में डिजिटल कैमरों को समाहित किया जाता है. हबल स्पेस टेलीस्कोप और अन्य खगोलीय उपकरणों में आवश्यक रूप से विशेष डिजिटल कैमरों का प्रयोग होता है  
मेगापिक्सल (Megapixels) अगर आप 4x6 की तस्वीर का प्रिंट निकालना चाहते है तो उसके लिए आपको कम से कम 2 मेगापिक्सल का कैमरा चाहिए ,लेकिन जब बड़ी तस्वीर निकालनी हो तो उसी अनुपात में इसकी जरूरत पड़ती है 
एल सी डी स्क्रीन एल सी डी स्क्रीन - कैमरे की स्क्रीन विभिन्न साईजो में आती है लेकिन ज्यादा तर तीन इंच की स्क्रीन पर्याप्त रहती है ताकी आप अपनी खींची गई तस्वीर को ठीक से देख सके और संपादित कर सके |
ज़ूम साइज - यह कैमरे का आवश्यक तत्व है | निर्माता कंपनीया अपने माल को बेचने में इसी का फायदा उठाती है | ये दो प्रकार का होता है एक डिजिटल ज़ूम दूसरा ऑप्टिकल ज़ूम | डिजिटल ज़ूम में उस कैमरे का सोफ्टवेयर तस्वीर को बड़ा कर के दिखाता है,जबकी वास्तव में तस्वीर उतनी ही रहती है | जैसे हमारे कंप्युटर में हम फोटो को बड़ा करके देखते है |जबकि ऑप्टिकल ज़ूम में कैमरे का लेंस आगे पीछे होकर आपकी तस्वीर को नजदीक से या दूर से लेने में सहायक होता है | जिसके कारण तस्वीर बहुत ज्यादा स्पष्ट और गहराई लिए आती है |घरेलू कैमरों में अधिकतर ३ एक्स का ऑप्टिकल ज़ूम आता है |अगर आप आऊटडोर फोटोग्राफी (जैसे जंगली दृश्य ,पशु पक्षी आदि की) करना चाहते है तो उसके लिए इससे भी ज्यादा ज़ूम की जरूरत पड़ेगी | लेकिन इतना ध्यान जरूर रखे की आपको डिजिटल ज़ूम के चक्कर में नहीं पढ़ना है |  
ISO-ये प्रकाश को नापने के काम आता है | ज्यादा ISO वाला कैमरा कम रोशनी में भी साफ़ तस्वीरे ले सकता है| ये 800,1600,3200,6400 तक की रेंज में आते है | 
फेस डिटेक्शन - ये फंकशन आपके द्वारा इच्छित व्यक्ति की इमेज को सेव करके रखता है | और बाद में जब आप ग्रुप में फोटो खीचते है तब ये उस चेहरे के सामने आने पर ही फोटो खीचेगा अन्यथा नहीं |  
आई ब्लिंकर - ये फंक्सन ओन होने की अवस्था में जब आप फोटो लेते है और ऑब्जेक्ट की आँखे फ्लैस की चमक की वजह से बंद हो जाती है तो वो फोटो खिची नहीं जायेगी उसकी आँख खुली रहने पर ही फोटो खीची जायेगी 
इमेज सेंसर - ये कैमरे के अंदर होता है इसका आकार जितना ज्यादा होता है ये उतनी ही स्पष्ट तस्वीर ले पायेगा |ये आजकल सीसीडी टाईप का आता है |  
इमेज स्टेबलाइजेशन - कभी कभी हम फोटो लेते है तब हमारा हाथ हिल जाता है और फोटो ब्लरी(धुंधली)आती है |इससे निपटने के लिए आधुनिक कैमरों में इमेज स्टेबलाइजेशन का फंक्शन दिया जाता है ये दो प्रकार का आता है एक डिजिटल दूसरा मेकेनिकल | इसमें तुलनात्मक रूप से देखे तो मेकेनिकल का परिणाम ज्यादा बढ़िया आता है | 
 मेमोरी कार्ड - हमारे कम्पयुटर की हार्ड डिस्क की स्पीड की तरह मेमोरी कार्ड के डेटा ट्रान्सफर की भी गति और नाप होता है| १० मेगा पिक्सल वाली 200 इमेज 1जीबी के डाटा कार्ड में रख सकते है|जितना मेगापिक्सल बढ़ेगा उतनी ही ज्यादा स्टोरेज वाले कार्ड की जरूरत पड़ेगी
                                      टिकाऊ उपभोक्ता सामान बनाने वाली कंपनी सैमसंग ने भारत में 12 डिजिटल कैमरा पेश किया है। इन कैमरों का दाम 5,990 से 16,990 रुपये के बीच है। 
                           कंपनी की ओर से जारी बयान में कहा गया है कि स्मार्ट डिजाइन और स्मार्ट अनुभव के विचार को अंगीकार करते हुए सैमसंग ने 12 डिजिटल कैमरा पेश किए हैं। इसके साथ ही देश में सैमसंग के डिजिटल कैमरा पोर्टफोलिया 19 उत्पादों पर पहुंच गया है। इनके दाम 5,990 से 44,990 रुपये है। 
पिछले 20 वर्षो में बहुत सी डिजिटल टैक्नोलोजी ईजाद हुई हैं। बदलती टैक्नोलॉजी के युग में कै मरा भी डिजिटल हो गया है। डिजिटल कैमरा, कैमरे का डिजिटल रूप है। इसके द्वारा फोटो इलैक्ट्रॉनिकली खींचे जा सकते हैं, जिसके लिए फोटो फिल्म रोल की आवश्यकता नहीं पड़ती।
                                डिजिटल कैमरे का सबसे बड़ा फायदा यह है की इसके द्वारा खींचे गए फोटो को खींचने के तुरंत बाद देखा सकते हैं, साथ ही यूएसबी ट्यूब के जरिए फोटो को कम्यूटर में डालकर देखा जा सकता है।
डिजिटल कैमरे में दो प्रकार के जूम आप्शन होते हैं। आप्टीकल जूम और डिजिटल जूम। आप्टीकल जूम: यह फिल्म कैमरा जूम लैंस की तरह काम करता है। इसकी मदद से कै मरे की फोकल लैंथ में बदलाव लाया जाता हैं, जिसका प्रयोग दूर की वस्तुओं की तस्वीरें खींचने के लिए किया जाता है।
 डिजिटल जूम: इसका प्रयोग दूर की इमेज को रीयल साइज में लेने के लिए किया जाता है। इमेज एडिटिग मे भी डिजिटल जूम को ही प्रयोग में लाया जाता हैं।
डिजिटल कैमरे के ये दोनों जूम पिक्सल्स पर निर्भर करते हैं, क्योंकि हर इमेज कलर पिक्सल्स से मिलकर बनती हैं। डिजिटल कैमरे में भी फोटो की क्वालिटी पूरी तरह से पिक्सल्स पर आधारित होती 
पिक्सल्स: जिन छोटे-छोटे कलर डॉट्स से मिलकर फोटो बनती है उन्हें पिक्सल्स कहते हैं। कैमरे में मौजूद हजारों रंग के पिक्सल्स की मदद से ही किसी दृश्य को कैद किया जाता है। डिजिटल कैमरे में पिक्सल्स न्यूमेरिकल वैल्यू पर आधरित होते हैं, इनकी संख्या 0 से 255 के बीच होती | मुख्यत: पिक्सल्स ही कैमरे का क्वालिटी तय करते हैं। जिस कैमरे जितने अच्छे शेड्स के पिक्सल्स होते हैं, उससे उतनी ही बेहतर तस्वीर ली जा सकती है। कैमरे में पिक्सल्स की शेड्स एस्पेक्ट रेशो पर निर्भर करती है।
एस्पेक्ट रेशो: यह फोटो के कलर पिक्सल्स की शेड्स को स्टोर करता है, जिससे इमेज में अलग रंगों को मिलाकर नया रंग बन सके। 
भारत द्वारा अपने तटीय क्षेत्रों का मानचित्र तैयार करने केलिए स्टीरियो डिजिटल एरियल फोटोग्राफी (एसडीएपी) का प्रयोग करने का निर्णय 6 अप्रैल 2011 को लिया गया. एसडीएपी 11000 किमी वृत्ताकार क्षेत्र को कवर करेगा जो गुजरात से पश्चिम बंगाल तक 60000 वर्ग किमी क्षेत्र तटीय क्षेत्र में फैला है. देश के समुद्र तटीय क्षेत्र के प्रबंधन के लिए उठाई जाने वाली यह अनोखी पहल है. विश्व बैंक की सहायता से चलने वाली इस परियोजना में 27 करोड़ रुपए की लागत तथा पांच वर्ष का समय आएगी. इस कार्य में पांच साल का समय लगेगा. इसके माध्यम से पिछले 40 वर्षों की बाढ़ सीमा की पहचान, समुद्र तल में उभार और उसके प्रभाव के आंकड़े जुटाए जाएंगे, जिसके आधार पर अगले सौ वर्षों के दौरान भू-क्षरण का अनुमान लगाया जाना है.


विदित हो कि पर्यावरण एवं वन मंत्रालय ने विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग के भारतीय सर्वेक्षण विभाग से एक सहमति पत्र पर 12 मई 2010 को हस्ताक्षर किया था. इसके अंतर्गत भारत के विस्तृत समुद्र तटीय क्षेत्र के खतरे वाली सीमा का मानिचत्र तैयार करना था. इस सर्वेक्षण में 125 करोड़ रुपए खर्च होने हैं. एसडीएपी के लिए भारतीय महाद्वीप के समुद्र तटीय क्षेत्रों को आठ भागों में बांटा गया है. इनके नाम इस प्रकार हैं-
1. भारत-पाक सीमा से गुजरात में सोमनाथ, 2. सोमनाथ से महाराष्ट्र में उलहास नदी, 3. उलहास नदी से कर्नाटक में सरस्वती नदी, 4. सरस्वती नदी से तमिलनाडु में केप कॉमरान, 5. केप कॉमरान से तमिलनाडु में पोन्नीयुर नदी, 6. पोन्नीयुर नदी से आंध्र प्रदेश में कृष्णा नदी, 7. कृष्णा नदी से ओडिशा में छतरपुर और 8. छतरपुर से पश्चिम बंगाल में भारत-बांग्लादेश सीमा 
फुजीफिल्म का एस 3300
नई दिल्ली फुजीफिल्म इंडिया प्राइवेट लिमिटेड ने एस सिरीज का अपना नया डिजिटल कैमरा एस 3300 पेश किया है। इसमें 26 ग सुपर जूम, एचडी मूवी रिकॉर्डिंग और स्माइल एंड शूट फंक्शन है। काले रंग के इस मॉडल में 24 मिमी जूम फुजीनॉन लेंस है और इसका रेजोल्युशन 14.0 मेगापिक्सल है। फेस डिटेक्शन और स्माइल एंड शूट जैसे फीचर की वजह से लोगों की मुस्कुराती हुई तस्वीरें बिना किसी कमी के खींची जा सकती हैं।



फुजीफिल्म के एमडी के. तनाका के अनुसार फुजीफिल्म का हमेशा यही प्रयास रहा है कि ग्राहकों को बेहतरीन उत्पाद एवं तकनीकी का लाभ दिया जाए और हमारी नई पेशकश एस 3300 इसी प्रयास का परिणाम है। फुजीफिल्म होल्डिंग कॉर्पोरेशन डिजिटल, ऑप्टिकल, बारीक रसायन एवं फिल्म की बारीक कोटिंग तकनीकियों के आधार पर विभिन्न प्रकार के उद्योगों जैसे इलैक्ट्रॉनिक इमेजिंग, फोटोफिनिशिंग उपकरण, मेडिकल सिस्टम, लाइफ साइंस, ग्राफिक आर्ट, फ्लैट पैनल डिस्पले मैटीरियल के निर्माण उद्योग में कार्यरत है। 
फ्यूजीफिल्म ने डिजिटल कैमरों की फाइन पिक्स एस 2500 एचडी के अलावा एवी सीरीज लांच की है। नए कैमरे एचडी कंपैटेबिलिटी और अत्याधुनिक फीचर्स से युक्त है। ये कैमरे वाजिब कीमत की रेंज में उपलब्ध हैं।

एवी 100 और एवी 150 12.2 मेगापिक्सल कैमरों और 14.0 मेगापिक्सल के साथ शक्तिशाली फुजीनोन 3 एक्स आप्टिकल जूम लेन्स की पेशकश करता है।

दो नए माडलों के साथ जापान की कंपनी ने अपने प्रतिस्पर्धियों के लिए नए मानक तय किए हैं जो कि एचडी फीचर सिर्फ अपने हाई एंड प्रोडक्ट में ही देते हैं। एवी कैमरे इस्तेमाल करने में आसान और बेहतर तस्वीर देने वाले हैं।


दुनिया की सबसे बड़ी फोटोग्राफिक सॉल्यूशंस कंपनी फुजीफिल्म ने हाई-डेफेनिशन डिजिटल कैमरों की रेंज में विस्तार करते हुए अत्याधुनिक खूबियों से लेस एचडी कम्पैटेबल कैमरों की रेंज लॉन्च की है। इस रेंज में एवी-100 (12.2 मेगा पिक्सल) और एवी-150 (14.0 मेगापिक्सल) शामिल है। इन कैमरों में 3 एक्स ऑप्टिकल जूम लेंस है। कंपनी के जीएम (डीएससी) ए. राजकुमार ने बताया कि इस रेंज की शुरूआती कीमत 4999 रूपए  
डिजिटल कैमरा …..
कैमरा पसंद करते समय एक चीज़ और देखते हैं, कैमरा निर्माता। किसी भी विषय के संबन्ध में साधारणतया तीन तरह के लोग होते हैं:

  1. जिनको बिलकुल जानकारी नहीं होती
  2. जिनको थोड़ी बहुत जानकारी होती है
  3. एक्सपर्ट लोग, जिनको बहुत जानकारी होती है
तीसरे नंबर वाले लोगों के लिए यह लेख नहीं है, वे अपने निर्णय लेने में सक्षम हैं, उनको मुझसे बहुत अधिक जानकारी होती है, क्योंकि यहाँ कैमरों के मामले में मैं दूसरे नंबर की श्रेणी में आता हूँ; थोड़ी जानकारी है, अधिक पाने की चाह है।

यदि ये प्रश्न आपके दिमाग में घर किए हुए हैं तो इसका अर्थ है कि आप भी डिजिटल कैमरा लेना चाहते हैं और फिलहाल उधेड़बुन में हैं। घबराईये नहीं, कोई नई बात नहीं है, लगभग हर डिजिटल कैमरा लेने वाला इसका शिकार होता है। इसका समाधान बहुत आसान है, बस कुछ बातें ध्यान में रखनी चाहिए। जैसे कि कैमरा कब लेना चाहिए? अब यह कोई मौसम पर तो निर्भर करता नहीं है!! यदि आपको डिजिटल कैमरे की आवश्यकता महसूस हो रही है और जेब में माल है तो खरीद लीजिए, किसी मौसम की प्रतीक्षा मत कीजिए। साधारणतया लोग ऐसी चीज़ों की खरीददारी तब करते हैं जब कंपनियाँ भारी डिस्काऊँट आदि देती हैं। जैसे भारत में दीपावली के आसपास बहुत कंपनियाँ अपने उत्पादों पर तरह-२ की छूट और गिफ़्ट आदि देती हैं, अमेरिका में क्रिसमस के समय पर बहुत बढ़िया ऑफ़र आदी मिलते हैं। तो आप कहाँ से अपना कैमरा ले रहे हैं इस पर भी निर्भर करेगा आपकी खरीद का समय; यदि स्वयं या किसी के द्वारा अमेरिका से मंगवा रहे हैं तो क्रिसमस का समय उपयुक्त रहेगा, पर ध्यान रहे कि उस समय कुछ उत्पादों का स्टॉक जल्दी समाप्त हो जाता है, इसलिए इस बात के लिए तैयार रहें। यदि भारत में खरीद रहे हैं तो फिलहाल तो दीपावली की प्रतीक्षा करना कोई खास लाभकारी नहीं होता क्योंकि (मेरी जानकारी अनुसार)डिजिटल कैमरों पर अभी कोई खास ऑफ़र नहीं मिलते कंपनियों से। यदि सिंगापुर या दुबई से खरीद रहे हैं तो ध्यान रखें कि इन जगहों पर लोगों को आकर्षित करने के लिए हर साल शॉपिंग फेस्टिवल होते हैं जिस दौरान बहुत से अच्छे-२ ऑफ़र सामने आते हैं। 
लेकिन, कैमरा लेने से पहले यह निश्चय करें कि क्या आपको वाकई कैमरा चाहिए? यदि हाँ तो क्या कारण हैं जिनकी वजह से आपको डिजिटल कैमरा चाहिए? इन कारणों की एक सूचि बना लें(आगे भी काम आएगी, कैमरा मॉडल निर्धारित करने में)। इससे यदि आपको नहीं लगता कि आपको डिजिटल कैमरे की आवश्यकता है तो मत खरीदिए, यदि माल जेब में है तो उसको संभाल के अलग रख दीजिए, बाद में जब वाकई आपको कैमरे की आवश्यकता महसूस होगी तब काम आएगा। मैं समझता हूँ कि बिना आवश्यकता के कैमरा लेने से अच्छा है कि जब आवश्यकता हो तभी उस समय उपलब्ध आवश्यकताओं अनुसार कैमरा लिया जाए।  
अब जब निश्चय कर ही लिया है कि कैमरा लेना है तो निन्यानवें के फेर से बचने का प्रयत्न कीजिए। बहुत से लोग(मैं भी) कोई चीज़ लेने से पहले अलग-२ कंपनियों के कुछ मॉडलों
की एक सूचि बनाते हैं और फिर उसमें से एक(या अधिक, जैसी आवश्यकता/उत्पाद) को चुनते हैं। तो डिजिटल कैमरा लेते समय भी सूचि बनाते हैं, एक मॉडल पसंद करते हैं और

यदि उसको लांच हुए थोड़ा समय हो चुका है तो उसके अगले वर्जन की प्रतीक्षा करते हैं क्योंकि उसमें कुछ नया आ रहा है। जब वो आ जाएगा तो फिर कुछ और चीज़ है जो पसंद

नहीं, तो उसके बाद अगले की प्रतीक्षा। यही है निन्यानवें का फेर, एक चक्र है जिसमें आप घूमते ही रहोगे। मैं यह नहीं कहता कि प्रतीक्षा नहीं करनी चाहिए, लेकिन हर चीज़ की एक हद होती है भई!! यदि आप बेसिक प्वाइंट एण्ड शूट(point and shoot) वाला कैमरा ले रहे हैं तो थोड़ी प्रतीक्षा करने पर आपको नया वर्जन मिल सकता है लेकिन यहाँ निन्यान्वें के फेर में पड़ने के चान्स अधिक होते हैं 
क्यों? वह इसलिए क्योंकि प्रायः कैमरा कंपनियाँ साल के आरम्भ में नए कैमरों की घोषणा करती हैं और तीन-चार महीने के भीतर उस मॉडल को बाज़ार में उतार देती हैं। इसके बाद साल के मध्य में भी नए वर्जन/अपग्रेड(upgrade) आदि की घोषणाएँ होती हैं जिनको क्रिसमस के पहले(सितंबर से नवंबर के बीच) बाज़ार में उतार दिया जाता है। अब जैसे कि मैंने देखा है, डिजिटल कैमरे यहाँ भारत में तुरंत नहीं आते, कम से कम रिटेल बाज़ार में तो नहीं, ग्रे मार्किट में भले ही आ जाएँ। तो यदि आप भारत में ही खरीदने की सोच रहे हैं तो अपनी आशाएँ कम ही रखें। जो लोग डीएसएलआर(dslr) या ब्रिज(bridge)/प्रोज़्यूमर(prosumer) कैमरा लेने की सोच रहे हैं उनके लिए आसानी है, निन्यानवें के फेर में पड़ने के चान्स कम हैं क्योंकि इन कैमरों के नए वर्जन जल्दी-२ नहीं आते, प्राय: 3-4 वर्षों के अंतराल पर आते हैं।  
यह निर्णय करना भी आवश्यक है कि क्या आपको लेटेस्ट(latest) ही लेना है? बहुतया ऐसा भी होता है कि नवीनतम मॉडल में पिछले मॉडल के अनुपात कोई नई फीचर आदि नहीं डाली गई, सिर्फ़ थोड़ा बहुत ही फेर बदल किया गया है। ऐसी स्थिति में बेहतर है कि आप नवीनतम मॉडल की ओर ध्यान न दें क्योंकि उसके और पिछले मॉडल की कीमत में जो अंतर होगा वह उन बदलावों के लिए कहीं से जस्टीफाईड(justified), यानि कि उचित, नहीं होगा। तो नया वर्जन आने से आपको यह लाभ मिलेगा कि पिछले वर्जन की कीमत काफी नीचे आ जाएगी; यह आपके लिए खासतौर से तब बेहतर होगा जब आपकी जेब बहुत सीमित होगी क्योंकि ऐसी स्थिति में शायद वो मॉडल भी आपकी जेब में आ जाए जो पहले नहीं आ पा रहा था। और यदि बिलकुल नवीनतम मॉडल लेने की इच्छा नहीं है या कोई जल्दी नहीं है तो किसी भी नए मॉडल के बाज़ार में आने के पश्चात दो-तीन महीने प्रतीक्षा करना समझदारी होगी, इससे आपको पता चल जाएगा कि कैमरा ठीक है या फुस्स है। जल्दबाज़ी में की गई खरीद पर अक्सर पछताना पड़ जाता है और जब बात पंद्रह-बीस हज़ार रूपए या अधिक की हो तो गलती महँगी भी साबित होती है। 
मैंने सुझाव दिया था कि आपको डिजिटल कैमरा किसलिए चाहिए उन कारणों की सूचि बना लें, आगे कैमरे का चुनाव करने में भी सहायक होगी। तो उस सूचि से अब उन कारणों को लेकर एक नई सूचि बनाएँ जिसमें हो कि आपको कैमरे में क्या-२ चाहिए या आप कैमरे का प्रयोग कैसे करेंगे। उदाहरणार्थ, आप अधिकतर किस तरह की फोटोग्राफी करेंगे; पोर्ट्रेट(portrait) लेंगे या लैन्डस्केप(landscape), खेलों(sports) आदि की फोटो लेंगे या मैक्रो(macro) लेंगे, या फिर इस बारे में अनिश्चित हैं और सभी प्रकार की फोटोग्राफी करेंगे? क्या आप प्रोफेशनल फोटोग्राफर हैं/बनना चाहते हैं? या सिर्फ़ शौकिया फोटोग्राफी करेंगे? क्या आप सिर्फ़ कुछ अवसरों(घर आदि में किसी पार्टी फंक्शन या कहीं सैर-सपाटे पर गए) पर ही तस्वीरें लेना चाहेंगे या फोटोग्राफी की कला को सीखना चाहेंगे?  
क्या आपके लिए कैमरे का आकार और वज़न अधिक मायने रखता है; क्या आपको छोटा और हल्का कैमरा चाहिए या आप अच्छे फीचर(features) वाले बड़े कैमरे को लेना पसंद करेंगे? क्या आपको कैमरों और फोटोग्राफी का कोई पूर्व अनुभव है? यदि अनुभव है तो कितना है? आप कैमरे में किन खास फीचर्स(features) को चाहेंगे? और सबसे महत्वपूर्ण, आपका बजट कितना है  
इन सब के बारे में विचार करें, यदि किसी अच्छे से कैमरे की दुकान में जाते हैं(पड़ोस की छोटी इलेक्ट्रॉनिक्स की दुकान में नहीं जिसने 2-3 चलतऊ चीनी कैमरे रखे हुए हैं) तो वहाँ भी सेल्समैन आपसे कुछ इसी तरह के प्रश्न कर सकता है, यदि आप उससे राय लेंगे कि कौन सा कैमरा लिया जाए। लेकिन उसकी राय केवल और केवल एक सुझाव के तौर पर ही लें, उस पर पूर्ण विश्वास कर उसके द्वारा सुझाया कैमरा न लें ले क्योंकि (जैसा मैंने अधिकतर देखा है)वह आपको सबसे महँगा कैमरा टिकाने का प्रयास करेगा, कोई आवश्यक भी नहीं कि उसे कुछ खास पता हो इन चीज़ों के बारे में। 
कैमरों के बारे में जानने के लिए एक अति उत्तम वेबसाइट है, मैं भी इसकी सलाह पर अधिक भरोसा करता हूँ। इस तरह कुछ और वेबसाइटें भी मिल जाएँगी आपको जहाँ आप अपने बजट और फीचर की आवश्यकता अनुसार कैमरे देख सकते हैं। भारत में रहने वाले बंधुओं को व्यक्तिगत तौर पर सुझाव दूँगा कि यहाँ छपने वाली तकनीकी पत्रिकाओं में यदा-कदा छपने वाले कैमरा रिव्यू आदि को कोई भाव न दें, उनमें सुझाव इतने बेतुके होते हैं कि साफ़ दिखता है कि सारा मामला प्रायोजित है!! भारत में फिलहाल फोटोग्राफी संबन्धी कोई खास पत्रिकाएँ नहीं हैं, लेकिन योरोप और अमेरिका आदि में कुछेक अच्छी पत्रिकाएँ छपती हैं इस विषय पर भी। यहाँ भारत में जो एकाध फोटोग्राफी संबन्धी पत्रिकाएँ निकलती हैं उनमें बेहतर फोटोग्राफी करने संबन्धी तो कदाचित्* कुछ अच्छे सुझाव मिल जाएँ लेकिन कैमरा लेने संबन्धी अच्छे सुझावों की अपेक्षा न ही करें तो बेहतर है, क्योंकि जितना मैंने देखा है, उनमे रिव्यू(review) करने वाले या तो सालों पुराने मॉडल को नया समझते हैं(क्योंकि भारत में वह हाल ही में आया होता है) या मेगापिक्सल(megapixel) के पीछे भाग रहे होते हैं!!   
 मेगापिक्सल सब कुछ नहीं है, इसलिए उसके पीछे मत भागिए!! कैमरा निर्माता भी वही कर रहे हैं आजकल जो पर्सनल कंप्यूटर निर्माता(personal computer) करते आए हैं। जिस तरह पर्सनल कंप्यूटर निर्माता अपने टीवी/प्रिंट आदि विज्ञापनों में सिर्फ़ प्रोसेसर और एलसीडी स्क्रीन(LCD Screen) आदि के बारे में ही बताते हैं और अंदर दूसरे महत्वपूर्ण पुर्ज़ों(parts/components) में खेल खेल जाते हैं, उसी प्रकार कैमरा निर्माता भी आजकल सिर्फ़ मेगापिक्सल का खेल खेल रहे हैं, नए वर्ज़न/अपडेट में मेगापिक्सल बढ़ाओ और कैमरा बेचो। अज्ञानी जनता भी इस मेगापिक्सल के झांसे में आ जाती है यह जाने बिना कि मेगापिक्सल सब कुछ नहीं होता!! 
 मेगापिक्सल सिर्फ़ फोटो के रेज़ोल्यूशन(resolution) से संबन्ध रखता है, कि फोटो का आकार कितना बड़ा है और उसमें कितनी डिटेल/गहराई(depth) है। आम शब्दों में कहें तो ज़्यादा मेगापिक्सल का लाभ तभी है जब आपने प्रिंट निकालने हों, यदि कंप्यूटर पर ही फोटो रखने हैं तो कोई खास लाभ नहीं। प्रिंट भी यदि 4×6 या 8×12 तक के निकालने हैं तो 5-6 मेगापिक्सल पर ली फोटो काफी है, 10 मेगापिक्सल पर लेने से कोई अधिक अच्छी नहीं आ जाएगी। तो इसलिए मेगापिक्सल के अतिरिक्त भी कैमरे में कुछ होना चाहिए!!  
ऑप्टिकल ज़ूम (optical zoom) किसी भी कैमरे का मेरे अनुसार अति महत्वपूर्ण पहलू होता है। अधिकतर डिजिटल कैमरों में दो तरह का ज़ूम(zoom) होता है, ऑप्टिकल ज़ूम और डिजिटल ज़ूम(digital zoom)। इन दोनों में डिजिटल ज़ूम पर ध्यान न ही दें तो बेहतर है क्योंकि डिजिटल ज़ूम और कुछ नहीं करता सिर्फ़ आपकी फोटो को डिजिटली बड़ा कर देता है(यानि कि जैसे रबड़ को खींच दिया हो) जिससे फोटो फट सी जाती है, जबकि ऑप्टिकल ज़ूम असल ज़ूम होता है जो कि लेन्स(lens) को पोज़ीशन कर प्राप्त किया जाता है और जिससे फोटो की क्वालिटी में कोई अंतर नहीं आता।
कुछ कैमरा निर्माता(प्रायः निचले दर्जे के) आपको एक ही ज़ूम का आंकड़ा बताएँगे; कि कैमरे में 12x का ज़ूम है, जिसका अर्थ यह भी हो सकता है कि उसमें 3x का ऑप्टिकल ज़ूम है और 4x का डिजिटल ज़ूम – 3 गुणा 4 हुआ 12। अब इसमें आपके लिए 3x का ही ज़ूम काम का है, बाकी बेकार है। सस्ते कैमरे में अधिक ऑप्टिकल ज़ूम नहीं मिलता, क्योंकि अधिक ऑप्टिकल ज़ूम के लिए लेन्स की गुणवत्ता अधिक होनी चाहिए जिस कारण लेन्स की कीमत बढ़ जाती है और नतीजन कैमरे की कीमत बढ़ती है। इसलिए कैमरा लेते समय यह देखें कि उसका ऑप्टिकल ज़ूम कितना है, 3x का ऑप्टिकल ज़ूम आजकल सामान्य है और न्यूनतम अपेक्षा होती है, इससे कम वाले कैमरे को नज़रअंदाज़ करना ही बेहतर होगा आपके लिए।
कितना ऑप्टिकल ज़ूम लेना है यह आप पर निर्भर करता है। आपने किस तरह कि फोटोग्राफ़ी करनी है उस पर तो निर्भर करता ही है, आपकी जेब पर भी निर्भर करता है। जैसे यदि आम फोटोग्राफ़ी करनी है और आप घूमने फिरने जाते हैं तो सामान्यतः 3x का ज़ूम काफ़ी रहता है। आजकल 5x-6x ज़ूम वाले कैमरे भी सस्ते हो गए हैं। तो यदि कितना ज़ूम होता है इसका अंदाज़ा नहीं है तो किसी भी कैमरे की बड़ी दुकान में जाकर दो-तीन अलग-२ ज़ूम वाले कैमरे चला के देख लो। खरीदना कोई आवश्यक नहीं है, वहाँ सिर्फ़ देख के भी आ सकते हो। तो उन कैमरों को ट्राई करने से अंदाज़ा हो जाएगा कि 3x में कितना ज़ूम मिल रहा है और 6x में कितना, फिर उसके बाद अपने हिसाब से निर्णय कर सकते हो कि कितने ज़ूम वाला कैमरा लेना है।  
ऑप्टिकल ज़ूम के साथ-२ आजकल एक नई फीचर बाज़ार में अपनी जड़े मज़बूत कर रही है, इमेज स्टेबिलाईज़ेशन (image stabilization)। जो लोग इससे अंजान हैं उनके लिए आम शब्दों में इसका अर्थ है – एक ऐसी तकनीक जिससे कैमरे को पकड़ने वाले हाथों के कंपन के कारण फोटो जो थोड़ी सी हिल जाती है उसको रोकना/प्रभाव कम करना। हाथों में कंपन लगभग हर किसी के होता है, किसी के हाथों में कम होता है तो किसी के में अधिक। डिजिटल कैमरे को यदि पकड़े हुए हैं और फोटो ले रहे हैं तो कभी कैमरा इस कंपन के कारण थोड़ा हिल जाता है और फोटो उतनी शॉर्प(sharp) नहीं आती जितनी आनी चाहिए वरन्* थोड़ी धुंधला जाती है, जो कि खास तौर पर तब दिखाई देता है जब आप बड़ा प्रिंट निकालें या कम शटर स्पीड(shutter speed) पर कम रोशनी में तस्वीर लेते हैं। यह तकनीक आजकल कैमरों में आम होती जा रही है, इससे लैस बहुत से कैमरे आए दिन बाज़ार में आ रहे हैं। तो क्या हर कैमरे की इमेज स्टेबिलाईज़ेशन बढ़िया होती है? नहीं!! आम प्रचलन में आजकल बाज़ार में एक से अधिक तरह की इमेज स्टेबिलाईज़ेशन आज बाज़ार में है। पहले तरह की है ऑप्टिकल इमेज स्टेबिलाईज़ेशन(optical image stabilization) जिसमें कैमरे के लेन्स में सेन्सर आदि लगे होते हैं जो कि कंपन को पहचान लेन्स के अंदर मौजूद तत्वों को पोजीशन कर कंपन का प्रभाव कम करने का प्रयास करते हैं
दूसरे तरह की इमेज स्टेबिलाईज़ेशन को एन्टी ब्लर तकनीक(anti blur technology) के नाम से जाना जाता है जिसमें कैमरे की बॉडी(body) के भीतर उसके फोटो सेन्सर के साथ इसको लगाया जाता है जो कि सेन्सर को पोजीशन कर उसको कंपन का प्रभाव कम करने को कहता है। एक और तरह की इमेज स्टेबिलाईज़ेशन चल रही है जिसको डिजिटल इमेज स्टेबिलाईज़ेशन(digital image stabilization) कहते हैं। इसमें कैमरे के अंदर का सॉफ़्टवेयर डिजिटली कंपन के प्रभाव को कम करने का प्रयत्न करता है। कहने की आवश्यकता नहीं कि ऑप्टिकल इमेज स्टेबिलाईज़ेशन सबसे बेहतरीन होती है, उससे बेहतर और प्रभावकारी कोई नहीं, और सबसे घटिया(न होने से भी बेकार) डिजिटल इमेज स्टेबिलाईज़ेशन होती है। एन्टी ब्लर तकनीक आदि ठीक काम करती है, लेकिन ऑप्टिकल इमेज स्टेबिलाईज़ेशन जितनी प्रभावशाली नहीं होती। एक बात जो यहाँ गौर करने वाली है वह यह कि हर कंपनी की ऑप्टिकल इमेज स्टेबिलाईज़ेशन भी एक जैसी नहीं होती, किसी की बिलकुल प्रभावशाली नहीं होती तो किसी की बहुत प्रभावशाली होती है। इस पर मैं अपने विचार बाद में रखूँगा जब मैं कंपनियों के बारे में बात करूँगा। 
एक महत्वपूर्ण बात यह निर्णय लेने की है कि आपको बेसिक प्वाइंट एण्ड शूट(point and shoot) कैमरा लेना है कि ब्रिज(bridge)/प्रोज़्यूमर(prosumer) कैमरा लेना है या डीएसएलआर(dslr) लेना है। प्वाइंट एण्ड शूट हुए वे कैमरे जो कि आम कैमरे होते हैं, प्रायः छोटे साइज़ के साधारण कैमरे जिसको आप लक्ष्य की ओर साधें और शटर(shutter) दबा फोटो ले लें। उसमें आपको पहले से ही सैट कई तरह के सीन(scene) मोड(mode) मिल जाएँगे अलग-२ तरह की फोटो लेने के लिए, जैसे लैन्डस्केप(landscape), पोर्ट्रेट(portrait), पार्टी(party), मैक्रो(macro), नाईट लैन्डस्केप(night landscape), नाईट पोर्ट्रेट(night portrait) आदि। इस तरह के कैमरों में मैनुअल(manual) कंट्रोल बहुत कम(न के बराबर) होता है और लगभग सभी कुछ ऑटोमैटिक होता है। ये कैमरे आम जन(जिनको फोटोग्राफ़ी की तकनीकी जानकारी नहीं होती) के लिए होते हैं। ये कैमरे सबसे सस्ते आते हैं और इनको प्रयोग करना बहुत आसान होता है तथा रख-रखाव का कोई खास झंझट नहीं होता।  
डीएसएलआर प्रोफेशनल कैमरे होते हैं उन लोगों के लिए जो कि फोटोग्राफी में काफ़ी दक्ष हैं और उसकी तकनीकी जानकारी रखते हैं तथा जो अपने कैमरों में लगभग हर चीज़ को स्वयं निर्धारित करना चाहते हैं, जैसे शटर स्पीड, आपर्चर(aperture), आईएसओ(iso) आदि। इन कैमरों की खासियत यह है कि ये आपको अधिकतम कंट्रोल देते हैं, आप कैमरे के लेन्स आदि भी आवश्यकता अनुसार बदल सकते हैं, लेकिन ये कैमरे सबसे महंगे आते हैं और इनको काफ़ी अच्छे रख-रखाव की आवश्यकता होती है। डीएसएलआर के बारे में तकनीकी रूप से जानने के लिए अंग्रेज़ी विकिपीडिया पर यह लेख देखें। लेकिन बहुत से ऐसे लोग भी है जो कि डीएसएलआर और प्वाइंट एण्ड शूट की खूबियाँ चाहते हैं लेकिन इन दोनों की खामियाँ नहीं चाहते। तो ऐसे लोगों के लिए कैमरा निर्माताओं ने उन्नत प्वाइंट एण्ड शूट कैमरे निकाले जिनमें डीएसएलआर और प्वाइंट एण्ड शूट की लगभग सभी खूबियाँ थीं और खामियाँ न के बराबर, इन कैमरों को ब्रिज अथवा प्रोज़्यूमर कैमरे कहते हैं। ये कैमरे साधारणतया डीएसएलआर से कुछ चीज़ों में ही कम होते हैं(जैसे लेन्स बदल नहीं सकते, कैमरे का सेन्सर डीएसएलआर से छोटा होता है) और ये प्वाइंट एण्ड शूट से महँगे और डीएसएलआर से सस्ते होते 
यदि आप अभी फोटोग्राफी में नए हैं या कोई खास जानकारी नहीं रखते या हल्का-फुल्का छोटा कैमरा चाहते हैं तो आपके लिए बेसिक प्वाइंट एण्ड शूट ही सही है। यदि आप फोटोग्राफी की अच्छी जानकारी रखते हैं अथवा उसको सीखने के इच्छुक हैं तो ब्रिज/प्रोज़्यूमर कैमरे में निवेश करना अच्छा रहेगा। और यदि आप बहुत अच्छी जानकारी रखते हैं तो फिर तो आपके लिए डीएसएलआर ही चंगा है। हर तरह के लोगों और हर तरह की इच्छाओं के अनुरूप आजकल कैमरे मिल जाते हैं। तो आपको यह निश्चय करना है कि आपको किस प्रकार का कैमरा लेना है।  

पहली श्रेणी वाले लोग विज्ञापनों से अधिक प्रभावित होते हैं, जिस कंपनी का विज्ञापन जानदार, उनकी नज़र में वही कंपनी और उसका माल सबसे बढ़िया!! ऐसे लोग यदि समझ(अपनी नहीं, दूसरे जानकार व्यक्ति की) से काम नहीं लेते तो कई बार नुकसान उठाते हैं; अनुभव से बढ़िया तो कोई आचार्य आज तक हुआ नहीं!! भाग-२ में मैंने मेगापिक्सल भ्रांति के बारे में लिखा था कि कैसे कैमरा निर्माता मेगापिक्सल के दम पर कैमरे बेचने में लगे हैं। इस भ्रांति का शिकार अधिकतर पहली श्रेणी वाले लोग ही होते हैं। यदि आप पहली श्रेणी के हैं तो इसमें शरमाने वाली कोई बात नहीं है, हर कोई पहली सीढ़ी से ही शुरुआत करता है, जो तीसरी श्रेणी में आते हैं वे भी कभी पहली श्रेणी में ही थे। कोई चीज़ यदि मायने रखती है तो वह यह कि आप कितनी जल्दी पहली से दूसरी और दूसरी से तीसरी श्रेणी में जाते हैं। 
तो पहले अब विज्ञापनों को ही देखते हैं। विज्ञापनों के मामले में यदि भारतीय टीवी को लें तो सोनी के साइबरशॉट कैमरों के विज्ञापन ही आप पाएँगे। दो-तीन वर्ष पहले तक कोडेक के फिल्म वाले कैमरों के विज्ञापन बहुत आते थे लेकिन अब आने बंद हो गए हैं, कोडेक को दिखाई दे रहा है कि फिल्म वाले साधारण कैमरे अब बिकने बंद हो रहे हैं, लोग डिजिटल कैमरे लेने पसंद कर रहे हैं। तो आज के समय में सोनी के विज्ञापन दिखाई देते हैं, जिस भी पहली श्रेणी वाले से पूछो, प्रायः सोनी का नाम ही भजता हुआ पाया जाएगा। क्या सोनी के कैमरे अच्छे होते हैं? इसका उत्तर प्रत्येक व्यक्ति अपने अनुसार देगा, मेरे अनुसार सोनी को कैमरे बनाने नहीं आते, इसलिए मैंने कभी सोनी के कैमरे को अपनी लिस्ट में नहीं डाला, क्योंकि अब तक सोनी का कोई कैमरा मेरी वांछित श्रेणी में मौजूद अन्य कैमरों के मुकाबले पर मुझे खरा उतरता नहीं दिखाई दिया। अभी कुछ दिन पहले की बात है, एक परिचित ने मुझसे पूछा कि सोनी का कौन सा कैमरा लें। मैं थोड़ा हैरान रह गया क्योंकि मैं अपेक्षा कर रहा था कि वे मुझसे पूछेंगे कि कौन सा कैमरा लें, लेकिन उन्होंने ब्रांड तो पहले से ही निर्धारित कर ली थी। जब मैंने पूछा कि सोनी का ही कैमरा क्यों लेना चाहते हैं तो पता चला कि उनको पता ही नहीं कि सोनी के अतिरिक्त भी कोई डिजिटल कैमरा बनाता है, उनको तो डिजिटल कैमरों का सोनी तक और फिल्म कैमरों का कोडेक तक ही ज्ञान था। फिर भी मैंने कहा कि सोनी के अतिरिक्त और भी कंपनियाँ हैं, तो वे बोले कि सोनी जितनी अच्छी तो नहीं होंगी, जब वो अपना विज्ञापन टीवी पर दिखाना अफ़ोर्ड(afford) नहीं कर सकतीं तो फिर ऐरी-गैरी कंपनियाँ होंगी जो सोनी जितनी अच्छी सर्विस न दे पाएँ। देखा जाए तो इसमें उनकी गलती नहीं है, कैमरा निर्माता ही भारत में अपना प्रचार अभी ठीक से नहीं कर रहे हैं, क्योंकि कदाचित्* उनके अनुसार भारत में अभी डिजिटल कैमरे का कोई खास बाज़ार नहीं है। लेकिन यहाँ एक दूसरा पहलू विचारणीय है, सर्विस। सोनी की सर्विस अच्छी है इस पर लोगों से हर तरह के विचार जानने को मिल सकते हैं, कुछ इसके नाम की कसम खाने को तैयार हो जाएँ तो कुछ इसके इतने खिलाफ़ मिल जाएँगे कि आपने भी क्या किसी की खिलाफ़त देखी होगी!!  
डिजिटल कैमरों की दुनिया में आजकल कुछ आम नाम हैं; कोडेक(kodak), सोनी(sony), कैनन(canon), निकोन(nikon), ओलम्पस(olympus) और पैनासोनिक(panasonic)। कुछ अन्य नाम भी मिल जाएँगे जैसे कि कैसिओ(casio), सैमसंग(samsung) और एचपी(HP)। जो लोग थोड़ी अधिक जानकारी रखते हैं उन्होंने कुछ और नाम भी पढ़/सुन रखे होंगे; रीको(ricoh), पेन्टैक्स(pentax), मिनोल्टा(minolta), लेएका(leica), सिग्मा(sigma 
आम नामों में, कोडेक तो फिलहाल जगह हासिल करने की कोशिश कर रहा है, सोनी और पैनासोनिक ने कुछ जगह हासिल की है और तेज़ी से उभर कर आ रहे हैं, ओलम्पस इनसे आगे है और सबसे स्थापित खिलाड़ी हैं कैनन और निकोन। कैसिओ, सैमसंग और एचपी अभी फिलहाल दूसरी श्रेणी में हैं और इनको काफ़ी रास्ता तय करना है पहली श्रेणी में आने के लिए। रीको का अपना अलग मुकाम है, पेन्टैक्स और मिनोल्टा के डीएसएलआर चलते हैं(सोनी ने कुछ समय पहले मिनोल्टा की कैमरा कंपनी को खरीद अपना पहला डीएसएलआर बाज़ार में निकाला है), लेएका और सिग्मा वास्तव में लेन्स बनाने के लिए प्रसिद्ध हैं। सिग्मा निकोन/कैनन और अपने कैमरों के लिए सस्ते लेन्स बनाता है जिनको लेने वाले फोटोग्राफ़रों की जेबें प्रायः बड़ी नहीं होती। लेएका एक काफ़ी पुरानी जर्मन कंपनी है जिसके लेन्स की क्वालिटी(quality) का सिक्का सबसे अधिक खरा माना जाता है, यदि आपके पास इसका लेन्स है तो अपनी पसंद(taste) और जेब(लेएका के लेन्स काफी महंगे होते हैं) के कारण आपकी औकात दूसरों की नज़र में अपने आप बढ़ जाती है!! लेएका से बढ़िया लेन्स बनाने वाले के बारे में मुझे नहीं पता, हो सकता है कि कोई हो या न हो। कुछ कैमरा निर्माता अपने लेन्स स्वयं बनाते हैं या कदाचित्* ऑऊटसोर्स करते हैं, लेकिन लेन्स उनके नाम से ही बिकता है, जैसे कैनन, निकोन, ओलम्पस। लेकिन कुछ कैमरा निर्माता एक(या एक से अधिक) प्रसिद्ध लेन्स निर्माता के साथ गठबंधन करते हैं और उनके लेन्स उनके नाम के ठप्पे के साथ ही प्रयोग करते हैं, जैसे कोडेक श्नेडर-क्रूज़नैक(Schneider-Kreuznach) के लेन्स प्रयोग करता है, सोनी कार्ल ज़ाइस(Carl Zeiss) के और पैनासोनिक प्रयोग करता लेएका(Leica) के लेन्स। लेकिन पैनासोनिक सिर्फ़ लेएका के लेन्स ही प्रयोग नहीं करता, वह उसके लिए कैमरे भी बनाता है जिनमें लेएका के मुताबिक थोड़ा फेर-बदल होता है और उस पर पैनासोनिक की जगह लेएका का ठप्पा होता है। वैसे कोई आवश्यक नहीं कि इन कैमरा निर्माताओं के प्रत्येक कैमरे में इन लेन्स निर्माताओं के लेन्स लगे हों, कुछेक सस्ते कैमरों में इनके लेन्स नहीं लगे होते क्योंकि कीमत पर वे माफ़िक नहीं बैठते। गौर करने वाली बात यह है कि ये तीनों लेन्स निर्माता जर्मन मूल के हैं, और जर्मन दक्षता और परिशुद्धता का लोहा लगभग सभी मानते हैं!!  
बात यदि निजी सलाह की आती है तो मैं कैसिओ, सैमसंग और एचपी से दूर रहने की सलाह दूँगा, अभी इनके कैमरों को बहुत सफ़र करना है कि वे उस मुकाम पर पहुँच सकें कि कोई समझदार व्यक्ति इनको लेने की सोचे। अभी ये लोग दुबले-पतले कैमरे बनाने में लगे हैं, लेकिन हर चीज़ स्लिम अच्छी नहीं होती यह इनको समझना होगा। प्वाइंट एण्ड शूट कैमरों में सोनी को भी फिलहाल नज़रांदाज़ करना ही ठीक है, उसको अभी सुधार की आवश्यकता है। बेसिक प्वाइंट एण्ड शूट में कोडेक, कैनन और पैनासोनिक के कैमरे देखें। कोडेक एक पुराना नाम है, इसके कैमरों की जो एक खासियत है वह यह कि इसके कैमरों द्वारा ली गई तस्वीरों में रंगों की गहराई गजब की होती है, इस कंपनी ने लगभग पूरी बीसवीं शताब्दी रंगों के विज्ञान में रिसर्च की है, उसका फल तो मिलेगा ही, इसलिए बाकी कोई खासियत हो या न हो, रंगों की गहराई लगभग अद्वितीय होती है। अन्य निर्माता भी अब उसके निकट पहुँच रहे हैं, कैनन ने अपने निचले दर्जे के कैमरों पर भी ध्यान देना आरम्भ किया है और उसके कैमरे भी बेहतर होते जा रहे हैं। पैनासोनिक के पक्ष में जो बात है वह यह कि उसके कैमरों में उच्च क्वालिटी के लिए प्रसिद्ध लेएका के लेन्स प्रयोग होते हैं और उसके कैमरों का ऑप्टिकल इमेज स्टेबिलाईज़ेशन अद्वितीय है, इस श्रेणी के अन्य कैमरों में से किसी में इसकी बराबरी करने वाला इमेज स्टेबिलाईज़ेशन मिलना अति कठिन है, कैनन आदि का इमेज स्टेबिलाईज़ेशन इसके सामने मज़ाक लगता है!! निकोन के कैमरे ठीक हैं, लेकिन इनको सोनी के साथ मैं द्वितीय श्रेणी में रखना ठीक समझूँगा क्योंकि इसके कूलपिक्स सीरीज़ के प्वाइंट एण्ड शूट कैमरों में अभी उस तरह की क्वालिटी नज़र नहीं आती जो इस सेगमेन्ट की अन्य नामी ब्रांडों के कैमरों में दिखाई देती है, हालांकि इसको प्रयोग करने वाले बहुत से लोग इस बात से सहमत नहीं होंगY 
ब्रिज/प्रोज़्यूमर कैमरों में दो नाम शीर्ष पर हैं, कैनन और पैनासोनिक। जहाँ कैनन के पॉवरशॉट S3IS ने सस्ते मामले में प्रोज़्यूमर कैमरा लेने वालों को लुभाया है वहीं जो थोड़ा अधिक रोकड़ा खर्च करने से नहीं हिचके उनकी पसंद बिग बॉस प्रोज़्यूमर कैमरा, पैनासोनिक ल्यूमिक्स FZ50 रहा है जिसके 35mm से 420mm के 12x ऑप्टिकल ज़ूम वाले लेएका लेन्स ने और गजब की प्रभावशाली इमेज स्टेबिलाईज़ेशन ने बहुत से एक्सपर्ट्स को लुभाया है, हालांकि इन दोनो ही में अपनी-२ खामियाँ भी हैं। जून 2007 में कैनन ने अपने S3IS का अगला वर्जन S5IS निकाला, वहीं पैनासोनिक ने एक सस्ता प्रोज़्यूमर कैमरा FZ8 निकाला है और दूसरे बिग-बॉस FZ18 को सितंबर में निकालने वाला है जिसकी स्पेसिफ़िकेशन(specification ) आदि देख लग रहा है कि यह कैमरा धूम मचा देगा। कैमरों की यह प्रोज़्यूमर श्रेणी तेज़ी से गर्माती जा रही है, कैमरा निर्माता इस श्रेणी के फोटोग्राफ़रों की ज़रूरतों को समझ रहे हैं और यह भी समझ रहे हैं कि बहुत से लोग प्वाइंट एण्ड शूट के ऊपर कुछ चाहते हैं लेकिन डीएसएलआर की सिरदर्दी नहीं चाहते!! इस श्रेणी में ओलम्पस भी उभरकर आ रहा है, सोनी तो खैर अपने पैर जमाने की कोशिश कर ही रहा है, कोडेक भी पीछे नहीं रहना चाहता।  

]डीएसएलआर श्रेणी में कैनन और निकोन छाए हुए हैं, इनका कोई जवाब नहीं। लेकिन यदि किसी को अन्य विकल्प देखने हैं तो ओलम्पस एक सस्ता विकल्प है जिसके कैमरे अच्छे होते हैं, पेन्टैक्स भी बाज़ार में है। पैनासोनिक ने कुछ समय पहले ही अपना पहला डीएसएलआर निकाला था और इधर कोनिका-मिनोल्टा की कैमरा डिविज़न को खरीद सोनी ने मिनोल्टा के एक डीएसएलआर में थोड़े से फेर-बदल कर अपना भी पहला डीएसएलआर कैमरा बाज़ार में उतारा। और इनके साथ ही लेएका भी बाज़ार में है, जिसका कैमरा तो पैनासोनिक बनाता है और लेन्स लेएका का अपना होता है।
 ऐसा नहीं है कि स्लिम कैमरे बेकार ही होते हैं। जिस तरह कोई आवश्यक नहीं कि हट्टे-कट्टे कैमरे अच्छे ही होंगे उसी तरह स्लिम पर भी एक ही नियम लागू नहीं होता। लेकिन यदि आप किसी चीज़ में कुछ फीचर आदि डाल रहे हैं तो उसके लिए हार्डवेयर भी चाहिए और फिलहाल मेरी जानकारी अनुसार कार्ड जितने स्लिम कैमरों में “उतना” दम नहीं होता। दूसरी बात लेन्स की भी है। अब कई स्लिम कैमरे ऐसे आते हैं जिनका लेन्स कैमरा यूनिट के अंदर ही होता है, तो लेन्स उसमें अधिक बेहतर क्वालिटी का नहीं हो सकता और ऑप्टिकल ज़ूम यदि है तो बहुत कम(अमूमन 3x) ही होगा, क्योंकि जगह नहीं इतना सब डालने की। ज़ाति तौर पर मैंने आजकल मिलने वाले कार्ड स्लिम कैमरे प्रयोग कर नहीं देखे हैं इसलिए पक्के तौर पर नहीं कह सकता लेकिन उनके इन-यूनिट लेन्स द्वारा उपलब्ध ज़ूम पर मुझे शक ही है। 

ब्रिज कैमरा

Bridge digital camera

ब्रिज या SLR-जैसे कैमरे, उच्चतर-स्तर वाले डिजिटल कैमरे होते हैं जो बनावट और कार्य-क्षमता की दृष्टि से DSLR कैमरों की तरह होते हैं और इनमें कुछ उन्नत सुविधाएं भी उपलब्ध होती हैं लेकिन कॉम्पैक्ट कैमरों की तरह इनमें भी एक नियत लेंस और एक छोटे सेंसर का प्रयोग होता है. कॉम्पैक्ट कैमरों की तरह, अधिकांश ब्रिज कैमरों में भी चित्रों को फ्रेम करने के लिए लाइव पूर्वावलोकन का प्रयोग किया जाता है. उसी तरह के कंट्रास्ट-डिटेक्ट क्रियावली का प्रयोग करके ऑटोफ़ोकस को प्राप्त किया जाता है लेकिन कई ब्रिज कैमरों में अधिक नियंत्रण प्राप्त करने के लिए एक मैनुअल फ़ोकस की सुविधा उपलब्ध होती है.






इसका भौतिक आकार बड़ा लेकिन सेंसर छोटा होने के कारण, इनमें से कई कैमरों में बहुत अधिक क्षमता वाले विशेष लेंस होते हैं और साथ में ज़ूम करने की क्षमता भी अधिक होती है और इसका छिद्र भी बहुत नुकीला होता है जो आंशिक रूप से लेंस को परिवर्तित करने की अकर्मता की भरपाई करने में सहायक होता है. एक विशिष्ट उदाहरण है - [[निकोन कूलपिक्स P90 [Nikon Coolpix P90]]] पर 24× ज़ूम निकोर ED 4.6-110.4mm f2.8-5.0 [24× Zoom Nikkor ED 4.6-110.4mm f2.8-5.0] जो 35mm फॉर्मेट टर्म्स में एक 26-624mm ज़ूम लेंस होता है. ऐसे महत्वाकांक्षी विनिर्देशों वाले एक लेंस में असामान्यताओं को कम करने के लिए, इनकी संरचना काफी जटिल होती है जिसके लिए एकाधिक ऐस्फरिक तत्वों और प्रायः अनियमित-फैलाव वाले ग्लास का प्रयोग किया जाता है. इस उदाहरण में पिनकुशन के साथ-साथ बैरल विरूपण को भी कैमरे के फर्मवेयर में ठीक किया जा सकता है. उनके छोटे-छोटे सेंसरों की विघटित संवेदनशीलता की भरपाई करने के लिए, इन कैमरों में प्रायः हमेशा ही विशेष प्रकार की एक चित्र स्थिरीकरण प्रणाली समाहित होती है जो लम्बे समय से शिथिल पड़े प्रदर्शनमूलक अवयवों को सक्षम बना देती है.

इन कैमरों को कभी-कभी भूल से डिजिटल एसएलआर कैमरा मान लिया जाता है और इनका विपणन भी इसी रूप में कर दिया जाता है क्योंकि ये दोनों प्रकार के कैमरे देखने में एक ही तरह के लगते हैं. ब्रिज कैमरों में DSLR की तरह दूसरी तरफ से देखने की व्यवस्था का अभाव होता है जिसमें अब तक नियत (गैर-अंतरपरिवर्तनीय) लेंस ही लगाए जाते रहे हैं (यद्यपि कुछ मामलों में एक्सेसरी वाइड-ऐंगल या टेलीफोटो कंवर्टर्स को लेंस के साथ जोड़ा जा सकता है) जो आम तौर पर ध्वनि के साथ फ़िल्में ले सकता है और दृश्य को या तो लिक्विड क्रिस्टल डिस्प्ले या इलेक्ट्रॉनिक व्यूफ़ाइंडर की सहायता से कम्पोज़ किया जाता है. एक ट्रू डिजिटल SLR की तुलना में इनकी संचालन क्षमता आम तौर पर कम होती है लेकिन DSLR की तुलना में अधिक कॉम्पैक्ट और अधिक हल्के होने के बावजूद इनमें उच्च कोटि की गुणवत्ता वाले (पर्याप्त प्रकाश की सहायता से) चित्र लेने की क्षमता होती है. निम्न और मध्य श्रेणी के DSLR की तुलना में इस तरह के उच्च-स्तरीय मॉडलों का रिज़ोलुशन भी तुलनात्मक होता है. इनमें से अधिकांश कैमरे, चित्रों को एक रॉ इमेज फॉर्मेट या प्रोसेस्ड और JPEG कंप्रेस्ड या दोनों रूपों में संग्रहित कर सकते हैं. इनमें से अधिकांश कैमरों में DSLR की तरह अंतर्निर्मित फ्लैश उपलब्ध होता है.  

डिजिटल सिंगल लेंस रिफ्लेक्स कैमरा



डिजिटल सिंगल-लेंस रिफ्लेक्स कैमरा (DSLR), एक प्रकार का डिजिटल कैमरा ही है जो फ़िल्म सिंगल-लेंस रिफ्लेक्स कैमरा (SLR) पर आधारित होता है. उनका नाम उनकी अद्वितीय प्रदर्शन प्रणाली से लिया गया है जिसमें एक ऐसा दर्पण होता है जो प्रकाश को एक अलग ऑप्टिकल व्यूफ़ाइंडर के माध्यम से लेंस से प्रकाश को परावर्तित करता है. चित्र को कैप्चर करने के उद्देश्य से दर्पण अपने मार्ग से हट जाता है जिससे प्रकाश के इमेजर पर पड़ने में आसानी होती है. चूंकि फ्रेम करने के दौरान इमेजर तक प्रकाश नहीं पहुंच पाता है इसलिए दर्पण बॉक्स में विशिष्ट सेंसरों का प्रयोग करके ऑटोफ़ोकस को कार्यान्वित किया जाता है. 21वीं सदी के अधिकांश DSLR कैमरों में भी एक "लाइव व्यू" मोड होता है जो चयन करने पर कॉम्पैक्ट कैमरों की लाइव पूर्वावलोकन प्रणाली को उत्तेजित कर डेटा है.

अन्य प्रकार के कैमरों की अपेक्षा इन कैमरों के सेंसरों का आकार बहुत बड़ा होता है जिनका विकर्ण आम तौर पर 18 mm से 36 mm (क्रॉप फैक्टर - 2, 1.6 या 1) तक होता है. यह उन्हें उत्कृष्ट निम्न-प्रकाश प्रदर्शन, एक प्रदत्त छिद्र में कम गहराई वाला क्षेत्र और एक बड़ा आकार प्रदान करता है.

वे अंतरपरिवर्तनीय लेंसों का प्रयोग करते हैं; प्रत्येक प्रमुख DSLR निर्माता विभिन्न प्रकार के लेंसों की भी बिक्री करता है जिन्हें ख़ास तौर पर उनके कैमरों में प्रयुक्त करने के विचार से निर्मित किया जाता है. इससे उपयोगकर्ता को अनुप्रयोग: वाइड-ऐंगल, टेलीफोटो, निम्न-प्रकाश इत्यादि के लिए डिजाइन किए गए सबसे उपयुक्त लेंस का चयन करने में आसानी होती है. इसलिए प्रत्येक लेंस को दर्पण के पीछे अपने ही शटर की आवश्यकता नहीं होती है क्योंकि DSLR में इमेजर के सामने एक फोकल-प्लेन शटर का प्रयोग किया जाता है.

प्रदर्शन के समय दर्पण के अपने मार्ग से हटने पर एक विशेष प्रकार की कटकटाने की आवाज़ सुनाई देती 
इलेक्ट्रॉनिक व्यूफ़ाइंडर, अंतरपरिवर्तनीय लेंस कैमरा

मुख्य लेख : Micro Four Thirds

2008 के अंतिम दौर में, एक नई किस्म के कैमरे का आगमन हुआ जिसमें DSLR कैमरों के अंतरपरिवर्तनीय लेंसों और बड़े-बड़े सेंसरों को, एक इलेक्ट्रॉनिक व्यूफ़ाइंडर के माध्यम से या पिछले LCD पर, कॉम्पैक्ट कैमरों की लाइव पूर्वावलोकन प्रणाली के साथ जोड़ा गया था. दर्पण बॉक्स को हटा दिए जाने के कारण ये DSLR कैमरों की तुलना में अधिक सरल और अधिक कॉम्पैक्ट होते हैं और ये आम तौर पर या तो DSLR कैमरों या फिर कॉम्पैक्ट कैमरों के संचालन और कार्य-क्षमता को उत्तेजित कर देता है. 2009 तक इस तरह की एकमात्र प्रणाली, माइक्रो फोर थर्ड्स [Micro Four Thirds] है जिसके घटकों को फोर थर्ड्स [Four Thirds] की DSLR प्रणाली से लिया गया है.  
डिजिटल रेंजफाइंडर

Rangefinder camera#Digital rangefinder

रेंजफाइंडर, एक उपयोगकर्ता-संचालित ऑप्टिकल प्रणाली है जिसका प्रयोग वस्तुओं की दूरी मापने के लिए किया जाता है जो कभी फ़िल्म कैमरों में प्रयुक्त होता था. अधिकांश डिजिटल कैमरे, ध्वनिक या इलेक्ट्रॉनिक तकनीक़ का प्रयोग करके अपने आप वस्तु की दूरी माप लेते हैं लेकिन यह कहना उचित नहीं होगा कि उनमें रेंजफाइंडर है. रेंजफाइंडर संज्ञा का मतलब कभी-कभी रेंजफाइंडर कैमरा भी होता है, अर्थात्, वह फ़िल्म कैमरा जो रेंजफाइंडर से लैस होता है जो उन SLR या साधारण कैमरों से अलग होता है जिसमें दूरी मापने की क्षमता नहीं होती है. 
लाइन-स्कैन कैमरे की प्रणाली

लाइन-स्कैन कैमरा, एक ऐसा कैमरा उपकरण है जिसमें एक लाइन-स्कैन इमेज सेंसर चिप और एक फ़ोकसिंग क्रियावली होती है. इन कैमरों का प्रयोग प्रायः केवल औद्योगिक स्थानों में चलायमान वस्तु के निरंतर प्रवाह के चित्र को लेने के लिए किया जाता है. वीडियो कैमरों के विपरीत, लाइन-स्कैन कैमरों में उनके मेट्रिक्स के बजाय पिक्सेल सेंसरों की एक सारिणी का प्रयोग होता है. लाइन-स्कैन कैमरे के डेटा में एक फ्रिक्वेंसी होती है जिसके अंतर्गत कैमरा, किसी लाइन को स्कैन करने, इंतज़ार करने और दोहराने का कार्य करता है. लाइन-स्कैन कैमरे के डेटा को आम तौर पर एक कंप्यूटर द्वारा प्रोसेस किया जाता है ताकि एक-आयामी लाइन डेटा का संग्रहण और द्वि-आयामी चित्र का निर्माण किया जा सके. उसके बाद औद्योगिक उद्देश्यों की पूर्ति के लिए संग्रहित द्वि-आयामी चित्रों के डेटा को इमेज-प्रोसेसिंग प्रक्रिया के द्वारा प्रोसेस किया जाता है.

लाइन-स्कैन प्रौद्योगिकी में डेटा को अति-तीव्र गति से और बहुत ज्यादा इमेज रिज़ोलुशंस पर कैप्चर करने की क्षमता होती है. आम तौर पर इन परिस्थितियों में, परिणामी संग्रहित इमेज डेटा तुरंत कुछ-एक सेकंड में 100 MB की सीमा को पार कर जाता है. इसलिए लाइन-स्कैन-कैमरा-आधारित एकीकृत प्रणालियों को आम तौर पर कैमरे के उत्पाद को कारगर बनाने के लिए डिजाइन किया जाता है ताकि प्रणाली के उद्देश्य की पूर्ति हो सके और इसके लिए सस्ती कंप्यूटर प्रौद्योगिकी का भी प्रयोग किया जाता है.

पार्सल संचालन उद्योग के लिए निर्मित लाइन-स्कैन कैमरें, कोण और आकार की परवाह किए बिना, फ़ोकस में आए किसी आयताकार पार्सल की छः भुजाओं को स्कैन करने के लिए अनुकूली फ़ोकसिंग क्रियावली को एकीकृत कर सकते हैं. परिणामी 2-D कैप्चर वाले चित्रों में पते की जानकारी और कोई ऐसा प्रतिरूप शामिल हो सकता है जिसे इमेज प्रोसेसिंग विधियों के माध्यम से प्रोसेस किया जा सकता है लेकिन यह 1D और 2D बारकोडों तक सीमित नहीं होता है. चित्रों के 2-D होने से वे मानव-पठनीय भी होते हैं और उन्हें कंप्यूटर के स्क्रीन पर भी देखा जा सकता है. उन्नत एकीकृत प्रणालियों में वीडियो कोडिंग और ऑप्टिकल कैरेक्टर रिकॉग्निशन (OCR) शामिल होते हैं.  
एकीकरण

कई उपकरणों में अंतर-निर्मित या अंतर-एकीकृत डिजिटल कैमरें होते हैं. उदाहरण के लिए, मोबाइल फोनों में प्रायः डिजिटल कैमरें शामिल होते हैं जिन्हें कभी-कभी कैमरा फोन भी कहा जाता है. अन्य छोटे-छोटे इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों जैसे - PDA, लैपटॉप और [[ब्लैकबेरी [BlackBerry]]] के उपकरणों में प्रायः कुछ डिजिटल कैमकोर्डरों की तरह एक अनिवार्य डिजिटल कैमरा होता है.

सीमित भंडारण क्षमता और चित्रों की गुणवत्ता के बजाय आम तौर पर सहूलियत पर ज्यादा ज़ोर देने के कारण, ऐसे बहुसंख्यक एकीकृत या अभिसरित उपकरण, चित्रों को लॉसी परन्तु कॉम्पैक्ट JPEG फाइल फॉर्मेट में संग्रहित करते हैं.

डिजिटल कैमरों से लैस मोबाइल फोनों की शुरूआत, J-फोन [J-Phone] द्वारा 2001 में जापान में की गई. 2003 में स्वचालित डिजिटल कैमरों की अपेक्षा कैमरा फोनों की ज्यादा बिक्री हुई और 2006 में भी सभी फ़िल्म-आधारित कैमरों और डिजिटल कैमरों की संयुक्त बिक्री से ज्यादा बिक्री इन कैमरों की हुई. केवल पांच सालों में इन कैमरा फोनों के उपकरणों की बिक्री एक बिलियन तक पहुंच गई और 2007 तक सभी मोबाइल फोनों के आधे से भी अधिक का स्थापित आधार, कैमरा फोन थे.

तकनीक़ी विनिर्देशों जैसे - रिज़ोलुशन, ऑप्टिकल गुणवत्ता और उपकरणों के उपयोग की क्षमता की दृष्टि से एकीकृत कैमरों का स्थान डिजिटल कैमरों की श्रेणी में सबसे निचले छोर पर है. हालांकि, द्रुत विकास के साथ-साथ, मेनस्ट्रीम कॉम्पैक्ट डिजिटल कैमरों और कैमरा फोन के बीच का अंतर अब धीरे-धीरे कम हो रहा है और एक ही पीढ़ी के उच्च-स्तरीय कैमरा फोनों और निम्न-स्तरीय स्वचालित डिजिटल कैमरों के बीच प्रतिस्पर्धा जारी है. 
फ़िल्म कैमरों का डिजिटल में रूपांतरण





डिजिटल सिंगल-लेंस रिफ्लेक्स कैमरा
जब डिजिटल कैमरे आम हो गए, तब कई फोटोग्राफरों का एक ही सवाल था कि क्या उनके फ़िल्म कैमरों को डिजिटल में रूपांतरित किया जा सकता है. इसका जवाब था - हां और नहीं. अधिकांश 35 mm फ़िल्म कैमरों के लिए जवाब है - नहीं, क्योंकि इस पर फिर से काम करने की आवश्यकता होगी और इसकी लागत भी बहुत ज्यादा होगी, ख़ास तौर पर लेंसों के साथ-साथ कैमरों को विकसित करने में बहुत ज्यादा काम करना होगा और इसकी लागत भी बहुत ज्यादा होगी. कैमरों को डिजिटल में रूपांतरित करने के अधिकांश मामलों में, इलेक्ट्रॉनिक्स के लिए पर्याप्त जगह बनाने और लिक्विड क्रिस्टल डिस्प्ले के माध्यम से पूर्वावलोकन करने के लिए, कैमरे के पीछे के भाग को हटाकर इसकी जगह एक रीतिगत निर्मित डिजिटल यूनिट के प्रतिस्थापन की आवश्यकता होगी.

35 mm फ़िल्म कैमरों से कई आरंभिक व्यवहारिक SLR कैमरों जैसे - NC2000 और कोडेक DCS [Kodak DCS] श्रृंखला को विकसित किया गया. हालांकि, उस समय की प्रौद्योगिकी के आधार पर इन कैमरों के पीछे वाले भाग, डिजिटल "बैक्स" होने के बजाय लगभग कैमरे वाले हिस्से से भी बड़े और भारी-भरकम यूनिट से लैस होते थे. इन कैमरों का निर्माण फैक्ट्री में हुआ था लेकिन फिर भी इनके विपणन के बाद इनके रूपांतरण की सुविधा उपलब्ध नहीं थी.

[[निकोन E2 [Nikon E2]]], इसका एक उल्लेखनीय अपवाद है और इस कैमरे के बाद [[निकोन E3 [Nikon E3]]] का निर्माण किया गया जिसमें 35mm फॉर्मेट को एक 2/3 CCD-सेंसर में रूपांतरित करने के लिए अतिरिक्त ऑप्टिक्स का प्रयोग किया गया.

कुछ 35 mm कैमरों के पीछे उनके निर्माता द्वारा निर्मित डिजिटल कैमरा लगे होते हैं जिसका एक उल्लेखनीय उदाहरण है - लीका [Leica]. मध्यम फॉर्मेट और बड़े फॉर्मेट वाले कैमरों (जिनमें 35 mm से भी ज्यादा फ़िल्म स्टॉक का प्रयोग होता है) में एक लो यूनिट प्रोडक्शन होता है और इसके विशिष्ट डिजिटल बैक्स की लागत 10,000 डॉलर से भी अधिक होती है. ये कैमरें बहुत अधिक मॉड्यूलर होते हैं और अलग-अलग जरूरतों को पूरा करने के लिए इनमें हैंडग्रिप्स, फ़िल्म बैक्स, विंडर्स और अलग से लेंस भी उपलब्ध होते हैं.

इनके पीछे के हिस्से में बड़े-बड़े सेंसर लगे होने के कारण चित्र का आकार भी बहुत बड़ा होता है. 2006 के आरंभ का सबसे बड़ा इमेजबैक, फेज़ वन [Phase One] का P45 39 MP है जो 224.6 MB तक के आकार का केवल एक TIFF चित्र का निर्माण करता है. मध्य फॉर्मेट वाले डिजिटल कैमरें, अपने छोटे-छोटे DSLR काउंटरपार्ट्स के मुकाबले स्टूडियो और पोर्ट्रेट फोटोग्राफी की तरफ अधिक क्रियाशील हैं; खास तौर पर [[ISO स्पीड [ISO speed]]] में DSLR कैमरों के 6400 के मुकाबले अधिक-से-अधिक 400 की क्षमता होती  
हैंडहेल्ड इलेक्ट्रॉनिक कैमरे, एक हैंडहेल्ड फ़िल्म कैमरे की तरह वहनीय और प्रयुक्त होने वाले एक उपकरण के रूप में, की शुरूआत 1981 में [[सोनी माविका [Sony Mavica]]] (मैग्नेटिक वीडियो कैमरा) के प्रदर्शन के साथ हुई. इसमें भ्रमित होने वाली कोई बात नहीं है क्योंकि सोनी [Sony] द्वारा प्रस्तुत इसके बाद के कैमरों के नाम के साथ भी माविका नाम जुड़ा था. यह एक एनालॉग कैमरा था जिसमें इसने लगातार पिक्सेल संकेतों की रिकॉर्डिंग की जैसा कि वीडियोटेप वाली मशीनें करती थी जिसके लिए इसे उन संकेतों को असतत स्तरों में रूपांतरित करने की आवश्यकता नहीं थी; इसने टेलीविज़न-जैसे संकेतों को 2 × 2 इंच वाले एक "वीडियो फ्लॉपी" में रिकॉर्ड किया.[7] संक्षेप में यदि कहा जाय तो यह एक वीडियो मूवी कैमरा था जिसने एकल फ्रेमों, फील्ड मोड में 50 प्रति डिस्क और फ्रेम मोड में 25 प्रति डिस्क की रिकॉर्डिंग की. इसके चित्रों की गुणवत्ता को तत्कालीन-वर्तमान टेलीविज़नों के चित्रों की गुणवत्ता के समान माना गया.

ये एनालॉग इलेक्ट्रॉनिक कैमरे, कैनन RC-701 [Canon RC-701] के साथ 1986 तक बाज़ार में पहुंचने में कामयाब नहीं हुए. कैनन [Canon] ने 1984 के ग्रीष्मकालीन ओलंपिक में इस मॉडल के एक प्रोटोटाइप का प्रदर्शन किया और योमिउरी शिम्बुन नामक एक जापानी समाचार-पत्र में इन चित्रों को मुद्रित किया. संयुक्त राज्य अमेरिका में, सबसे पहले USA टुडे के वर्ल्ड सिरीज़ बेसबॉल के कवरेज में वास्तविक विस्तृत-सूचना के प्रकाशन के लिए इन कैमरों का प्रयोग किया गया. इन एनालॉग कैमरों को व्यापक रूप से न अपनाने के पीछे कई कारण थे; लागत ($20,000 से ऊपर), फ़िल्म कैमरों की तुलना में ख़राब चित्रों की गुणवत्ता और गुणवत्ता वाले सस्ते प्रिंटरों का अभाव. वास्तव में चित्र लेने और उसे मुद्रित करने के लिए फ्रेम ग्रैबर जैसे उपकरण की उपस्थिति आवश्यक थी जो औसत उपभोक्ता की पहुंच के बाहर था. "वीडियो फ्लॉपी" डिस्कों में बाद में कई रीडर उपकरणों को शामिल कर लिया गया ताकि इन्हें स्क्रीन पर देखा जा सके लेकिन इन्हें कभी एक कंप्यूटर ड्राइव की तरह मानकीकृत नहीं किया गया.

प्रारंभिक अनुकूलकों को न्यूज़ मीडिया में प्रयुक्त करने के लिए निर्मित किया गया जिसके अंतर्गत लागत को टेलीफोन लाइनों द्वारा चित्रों को भेजने की उपयोगिता और क्षमता द्वारा नकार दिया गया. ख़राब चित्रों की गुणवत्ता की भरपाई, समाचार-पत्र की ग्राफिक्स के निम्न-रिज़ोलुशन द्वारा की गई. किसी उपग्रह की सहायता लिए बगैर चित्रों को भेजने की यह क्षमता, 1989 के टियाननमेन स्क्वायर विरोध प्रदर्शन और 1991 में प्रथम खाड़ी युद्ध के दौरान काफी उपयोगी साबित हुई.

US सरकारी एजेंसियों ने भी स्टिल वीडियो की इस अवधारणा में गहरी दिलचस्पी दिखाई, खास तौर पर US नौसेना ने, जो इसका प्रयोग एक विशेष एयर-टु-सी निगरानी प्रणाली के रूप में करना चाहती थी.

सबसे पहला एनालॉग कैमरा, कैनन RC-250 ज़ैपशॉट [Canon RC-250 Xapshot] हो सकता है जो 1988 में विपणन के माध्यम से उपभोक्ताओं तक पहुंचा. उस वर्ष निकोन QV-1000C [Nikon QV-1000C] नामक एक उल्लेखनीय एनालॉग कैमरे का उत्पादन हुआ जिसे एक प्रेस कैमरे के रूप में डिजाइन किया गया था और जिसे साधारण उपयोगकर्ताओं को बेचने के लिए प्रस्तुत नहीं किया गया जिसकी केवल कुछ-एक सौ यूनिटों की बिक्री हुई. इसने ग्रेस्केल में चित्रों की रिकॉर्डिंग की और अख़बार-प्रिंट में इसकी गुणवत्ता, फ़िल्म कैमरों के समान थी. दिखने में यह बिलकुल एक आधुनिक डिजिटल सिंगल-लेंस रिफ्लेक्स कैमरे की तरह लगता था. इसके चित्रों को वीडियो फ्लॉपी डिस्कों में संग्रहित किया जाता था. 
ट्रू डिजिटल कैमरों का आगमन






एक कंप्यूटरीकृत फाइल के रूप में चित्रों की रिकॉर्डिंग करने वाला सबसे पहला ट्रू डिजिटल कैमरा संभवतः 1988 का फ़ुजी DS-1P [Fuji DS-1P] था जिसने 16 MB वाले एक आतंरिक मेमोरी में इमेजों की रिकॉर्डिंग की और इस मेमोरी में डेटा को रखने के लिए एक बैटरी का प्रयोग किया गया. इस कैमरे को संयुक्त राज्य अमेरिका के बाज़ार में कभी नहीं लाया गया और इसके जापान में भेजे जाने की भी पुष्टि नहीं हुई है.

व्यावसायिक तौर पर उपलब्ध सबसे पहला डिजिटल कैमरा, 1990 का डाइकैम मॉडल 1 [Dycam Model 1] था; लॉजिटेक फोटोमैन [Logitech Fotoman] के रूप में भी इसकी बिक्री हुई. इसमें एक CCD इमेज सेंसर का प्रयोग किया जाता था, तस्वीरों को डिजिटल रूप में संग्रहित किया जाता था और डाउनलोड करने के लिए इसे सीधे एक कंप्यूटर से जोड़ दिया जाता था.[8][9][10]

1991 में, कोडेक [Kodak] ने कोडेक DCS-100 [Kodak DCS-100] को बाज़ार में लाया जो पेशेवर कोडेक DCS SLR [Kodak DCS SLR ] कैमरों की एक लम्बी श्रेणी का आरंभ था जो आंशिक रूप से फ़िल्म कैमरों, प्रायः निकोन [Nikon] कैमरों पर आधारित था. इसमें 1.3 मेगापिक्सेल वाले सेंसर का प्रयोग किया गया और इसकी कीमत 13,000 डॉलर थी.

1988 में प्रथम JPEG और MPEG स्टैंडर्ड फॉर्मेट के निर्माण की वजह से डिजिटल फॉर्मेट की रचना संभव हुई जिससे चित्र और वीडियो फाइलों को संग्रहित करने के लिए इन्हें कम्प्रेस करने में सफलता मिली. पीछे की तरफ एक लिक्विड क्रिस्टल डिस्प्ले वाले सबसे पहले उपभोक्ता कैमरे का आगमन 1995 में केसियो QV-10 [Casio QV-10] के रूप में हुआ और कॉम्पैक्टफ्लैश [CompactFlash] का प्रयोग करने वाले सबसे पहले कैमरे का आगमन 1996 में कोडेक DC-25 [Kodak DC-25] के रूप में हुआ.

उपभोक्ता डिजिटल कैमरों के लिए बाज़ार, मूल रूप से उपयोगिता के लिए निर्मित निम्न-रिज़ोलुशन वाले (या तो एनालॉग या डिजिटल) कैमरें थे. 1997 में उपभोक्ताओं के लिए सबसे पहले मेगापिक्सेल कैमरों का विपणन किया गया. वीडियो क्लिपों की रिकॉर्डिंग की क्षमता वाले सबसे पहले कैमरे का आगमन 1995 में संभवतः रिकोह RDC-1 [Ricoh RDC-1] के रूप में हुआ.

1999 में निकोन D1 [Nikon D1] नामक एक 2.74 मेगापिक्सेल कैमरे का आगमन हुआ जो एक प्रमुख निर्माता द्वारा पूरी तरह विकसित सबसे पहला डिजिटल SLR था और शुरू में इसकी लागत 6,000 डॉलर से कम थी जो पेशेवर फोटोग्राफरों और उच्च-स्तरीय उपभोक्ताओं के लिए सस्ता था. इस कैमरे में निकोन F-माउंट लेंसों का भी प्रयोग किया गया था जिसका मतलब था कि फ़िल्म फोटोग्राफर, इसी तरह के कई लेंसों का प्रयोग कर सकते थे जो उनके पास पहले से ही थी.  
इमेज रिज़ोलुशन



एक डिजिटल कैमरे के रिज़ोलुशन को प्रायः कैमरे के सेंसर (ख़ास तौर पर एक CCD या CMOS सेंसर चिप) द्वारा सीमाबद्ध किया जाता है जो पारंपरिक फोटोग्राफी में फ़िल्म के काम का स्थान-परिवर्तन करके प्रकाश को असतत संकेतों में बदल देता है. सेंसर, लाखों "बकेट" से मिलकर बना होता है जो जरूरी तौर पर फोटॉन की संख्या को गिनने का काम करता है जो सेंसर को प्रभावित करता है. इसका मतलब यह है कि सेंसर के निर्दिष्ट बिंदु पर का चित्र जितना ज्यादा चमकीला होता है, उसका मान उतना ही अधिक होता है जो उस पिक्सेल के लिए प्रस्तुत होता है. सेंसर के भौतिक संरचना के आधार पर, एक रंग फ़िल्टर सारणी का प्रयोग किया जा सकता है जिसके लिए एक डेमोसाइसिंग/अंतर्वेशन कलनविधि की आवश्यकता होती है. चित्र के परिणामी पिक्सेलों की संख्या, इसके "पिक्सेल गणना" का निर्धारण करती है. उदाहरण के लिए, एक 640x480 चित्र में 307,200 पिक्सेल या लगभग 307 किलोपिक्सेल होगा; एक 3872x2592 चित्र में 10,036,224 पिक्सेल या लगभग 10 मेगापिक्सेल होंगे.

केवल पिक्सेल गणना को आम तौर पर किसी कैमरे के रिज़ोलुशन का संकेत माना जाता है लेकिन यह एक गलत धारणा है. ऐसे कई कारक हैं जो सेंसर के रिज़ोलुशन को प्रभावित करते हैं. इनमें से कुछ कारकों में शामिल हैं - सेंसर का आकार, लेंस की गुणवत्ता और पिक्सेल का गठन (उदाहरण के तौर पर, बेयर फ़िल्टर मोज़ेक रहित एक मोनोक्रोम कैमरे में एक विशिष्ट कलर कैमरे की तुलना में अधिक रिज़ोलुशन होता है). अत्यधिक पिक्सेल मौजूद होने के कारण कई डिजिटल कॉम्पैक्ट कैमरों की आलोचना की गई है. सेंसर, इतने छोटे हो सकते हैं कि उनके 'बकेट', आसानी से उन्हें परिपूर्ण कर सकते हैं; बदले में, सेंसर का रिज़ोलुशन अपेक्षाकृत बड़ा हो सकता है जो कैमरे के लेंस से शायद ही प्राप्त हो.






जिस प्रकार प्रौद्योगिकी में सुधार हुआ है, उसी प्रकार लागत में भी नाटकीय रूप से कमी आई है. एक डिजिटल कैमरे के लिए मान के एक बुनियादी मापन के रूप में "प्रति डॉलर पिक्सेलों" की गिनती करने से, मूर के नियम के सिद्धांतों के साथ सामंजस्य स्थापित करते हुए एक नए कैमरे में प्रति डॉलर पिक्सेल की खरीद की संख्या में निरंतर और नियमित वृद्धि हुई है. कैमरों की अनुमानित कीमतों का आकलन, सबसे पहले बैरी हेंडी ने 1998 में हुए ऑस्ट्रेलियाई PMA DIMA सम्मलेन में प्रस्तुत किया और तभी से इसे "हेंडी के नियम" के रूप में संदर्भित किया जाने लगा.[11]

चूंकि आम तौर पर केवल कुछ-एक पहलू अनुपातों (ख़ास तौर पर 4:3 और 3:2) का ही प्रयोग किया जाता है इसलिए सेंसर के उपयोगी आकारों की संख्या सीमित होती है. इसके अलावा, सेंसर-निर्माता, प्रत्येक संभावित सेंसर आकार का निर्माण नहीं करते हैं लेकिन आकारों में वृद्धि करने के लिए आवश्यक कदम उठाते हैं. उदाहरण के लिए, 2007 में कैनन [Canon] द्वारा प्रयुक्त तीन बड़े-बड़े सेंसर (पिक्सेल गणना के संदर्भ में) थे - 21.1, 16.6 और 12.8 मेगापिक्सेल CMOS सेंसर. व्यावसायिक तौर पर डिजिटल कैमरों में प्रयुक्त सेंसरों की सारिणी निम्नलिखित है: 
चित्र लेने की विधियां





डिजिटल कैमरे के केंद्र में एक CCD इमेज सेंसर होता है.




यह डिजिटल कैमरा आंशिक रूप से असंयुक्त है. संयोजन के तौर पर लेंस (नीचे दायीं तरफ) को थोड़ा हटा दिया गया है लेकिन सेंसर (ऊपर दायीं तरफ) अभी भी उपयोगी चित्र लेता हैं जैसा कि LCD स्क्रीन (नीचे बायीं तरफ) पर दिखाया गया है.
जब से डिजिटल बैक की शुरूआत हुई, तब से इमेज को कैप्चर करने के लिए मुख्य तीन विधियों को प्रयोग में लाया जाता है जिनमें से प्रत्येक, सेंसर और कलर फ़िल्टरों के हार्डवेयर कॉन्फ़िगरेशन पर आधारित है.

पहली विधि को प्रायः सिंगल-शॉट कहते हैं, जो कैमरे के लेंस से होकर गुज़रने वाले प्रकाश के समक्ष कैमरे के सेंसर के प्रदर्शित होने की संख्या से संबंधित है. सिंगल-शॉट कैप्चर प्रणालियों में या तो बेयर फ़िल्टर मोज़ेक वाले एक CCD का प्रयोग होता है या तीन अलग-अलग इमेज सेंसरों (प्रत्येक प्राथमिक योगात्मक रंगों - लाल, हरा और नीला के लिए एक-एक सेंसर) का प्रयोग होता है जो एक बीम स्प्लिटर के माध्यम से उसी चित्र के समक्ष प्रदर्शित होते हैं.

दूसरी विधि को मल्टी-शॉट के रूप में संदर्भित किया जाता है क्योंकि सेंसर, लेंस-छिद्र के तीन या तीन से अधिक छिद्र-मुखों के एक क्रम में चित्र के समक्ष प्रदर्शित होता है. मल्टी-शॉट तकनीक़ के अनुप्रयोग की कई विधियां हैं. मूल रूप से सबसे साधारण विधि के अंतर्गत, योगात्मक रंग की जानकारी प्राप्त करने के लिए क्रमानुसार सेंसर के सामने से गुज़रे तीन फ़िल्टरों (एक बार फ़िर से बता दें - लाल, हरा और नीला) वाले एक एकल इमेज सेंसर का प्रयोग किया जाता था. मल्टिपल शॉट की एक दूसरी विधि का नाम माइक्रोस्कैनिंग है. इस तकनीक़ के अंतर्गत बेयर फ़िल्टर वाले एक एकल CCD को उपयोग में लाया जाता है लेकिन वास्तव में सेंसर चिप की भौतिक स्थिति को लेंस के फ़ोकस प्लेन पर स्थानांतरित कर दिया जाता है ताकि इसे एक अधिक रिज़ोलुशन वाले चित्र के साथ "स्टिच" किया जा सके नहीं तो CCD को कार्यान्वित किया जाता. इन दोनों विधियों को मिलाकर एक तीसरे संस्करण का निर्माण किया गया जिसमें चिप पर बेयर फ़िल्टर की आवश्यकता नहीं थी.

तीसरी विधि को स्कैनिंग कहते हैं क्योंकि सेंसर, संपूर्ण फ़ोकल प्लेन में ज्यादातर उसी तरह चलता है जिस तरह एक डेस्कटॉप स्कैनर का सेंसर चलता है. उनके रेखीय या त्रिरेखीय सेंसरों में फोटोसेंसर की केवल एक श्रेणी या तीन रंगों के लिए तीन श्रेणियों को उपयोग में लाया जाता है. कुछ मामलों में, सेंसर चलाकर उदाहरणार्थ, कलर को-साइट नमूने का प्रयोग करके या पूरे कैमरे को घुमाकर, स्कैनिंग के काम को अंज़ाम दिया जाता है; एक डिजिटल रोटेटिंग लाइन कैमरा, उच्च कोटि की रिज़ोलुशन वाले चित्र प्रदान करता है.

किसी प्रदत्त कैप्चर के लिए विधि का चयन मुख्यत: विषय-वस्तु द्वारा निर्धारित किया जाता है. ऐसे किसी वस्तु को कैप्चर करने की कोशिश करना आम तौर पर अनुचित होता है जो किसी चीज़ बल्कि एक सिंगल-शॉट प्रणाली के साथ चलता है. हालांकि, उच्च रंग निष्ठा और बड़े आकार के फ़ाइल और मल्टी-शॉट की सहायता से उपलब्ध रिज़ोलुशन और स्कैन करने वाले पीछे के हिस्से, स्टेशनरी वस्तुओं और बड़े आकार के फॉर्मेट वाले फोटोग्राफों के साथ काम करने के लिए व्यावसायिक फोटोग्राफरों के लिए इन्हें आकर्षक बना देते हैं.

21वीं सदी के आरंभ में सिंगल-शॉट कैमरों में आकस्मिक प्रगति और रॉ इमेज फ़ाइल की प्रोसेसिंग ने सिंगल शॉट और CCD-आधारित कैमरों का निर्माण किया जिनका लगभग हर क्षेत्र में, यहां तक कि उच्च-स्तरीय व्यावसायिक फोटोग्राफी के क्षेत्र में भी पूरा आधिपत्य था. CMOS-आधारित सिंगल शॉट कैमरे कुछ हद तक सामान्य बने रहे  
सीसीडी CMOS बनाम
सीसीडी CMOS बनाम

सीसीडी और CMOS सेंसर छवि (इमेज)को दर्ज करते हैं. विभिन्न प्रकार डिजिटल कैमरे में इस्तेमाल किया जा रहा है. डिजिटल कैमरों की बढ़ती लोकप्रियता के कारण CMOS सेंसर है ,डिजिटल कैमरा की कीमतों में भारी कमी के लिए य्ह सेन्सर ही है .जबकि सीसीडी आरोप युग्मित डिवाइस के नाम से जाना जातi है.

सीसीडी और CMOS दोनो मे खूबियां व कमजोरियों है .हालांकि, श्रेष्ठता का दावा अक्सर छवि सेंसरों के दो प्रकार के बनाने में शामिल निर्माताओं द्वाराकिया जiता है.दोनों ही छवि-सेंसरो का उद्देश्य प्रकाश को कन्वर्ट कर इलेक्ट्रॉनिक संकेतों में बदलना है.

कैमरे के सेंसर (ख़ास तौर पर एक CCD या CMOS सेंसर चिप) द्वारा सीमाबद्ध किया जाता है जो पारंपरिक फोटोग्राफी में फ़िल्म के काम का स्थान-परिवर्तन करके प्रकाश को असतत संकेतों में बदल देता है. सेंसर, लाखों "बकेट" से मिलकर बना होता है जो जरूरी तौर पर फोटॉन की संख्या को गिनने का काम करता है जो सेंसर को प्रभावित करता है. इसका मतलब यह है कि सेंसर के निर्दिष्ट बिंदु पर का चित्र जितना ज्यादा चमकीला होता है, उसका मान उतना ही अधिक होता है जो उस पिक्सेल के लिए प्रस्तुत होता है. सेंसर के भौतिक संरचना के आधार पर, एक रंग फ़िल्टर सारणी का प्रयोग किया जा सकता है जिसके लिए एक डेमोसाइसिंग/अंतर्वेशन कलनविधि की आवश्यकता होती है. चित्र के परिणामी पिक्सेलों की संख्या, इसके "पिक्सेल गणना" का निर्धारण करती है. उदाहरण के लिए, एक 640x480 चित्र में 307,200 पिक्सेल या लगभग 307 किलोपिक्सेल होगा; एक 3872x2592 चित्र में 10,036,224 पिक्सेल या लगभग 10 मेगापिक्सेल होंगे.





एक सीसीडी संवेदक प्रत्येक पिक्सेल को विद्युत आरोप के एक निर्गम नोड के माध्यम से स्थानांतरित कर एक वोल्टेज, बफर और अनुरूप संकेत के रूप में चिप मे भेजा जाता है .और सभी पिक्सेल चार्ज करने के लिए प्रकाश परिवर्तित किया जाता है . CMOS के मामले में, प्रत्येक पिक्सेल इसके वोल्टेज के रूपांतरण के लिए चार्ज होता है,

CMOS चिप्स के समर्थकों का तर्क है कि यह चिप्स बहुत सस्ती हैं. कैमरा की कीमतों बहुत कम करने में यहउपयोगी है .

सारांश

• CMOS, चिप्स सस्ती है.

• सीसीडी अधिक बिजली खाती है, जबकि CMOS कम बिजली खाती है,

• सीसीडी और CMOS छवि डिजिटल कैमरों में उपयोग किये जाने वाले सेंसरों के नाम हैं.

• सीसीडी आरोप डिवाइस युग्मित है, जबकि CMOS धातु के ऑक्साइड कंडक्टर है.

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